Saturday, November 6, 2010

खीचूँ लकीरें जैसी भी बन जाती हैं तस्वीर सी !

दीपावली की असीम शुभकामनाओं के साथ,आप सब के सामने फिर से हाज़िर हूँ, एक नई ग़ज़ल के साथ जो हाल ही में गुरूकुल में तरही के लिए लिखी गई थी ! बगैर कुछ ज्यादा भूमिका बनाये सीधे ग़ज़ल के पास चलते हैं ... मिसरा-ए-तरह ... जलते रहें दीपक सदा काइम रहे ये रौशनी

आँखों से मैं कहने लगा , आँखों से वो सुनने लगी !
कैसा है ये लहजा , इसी को कहते हैं क्या आशिकी !!

क़ाबिज हुआ चेहरा तेरा कुछ इस तरह से जह्न में,
खीचूँ लकीरें जैसी भी बन जाती हैं तस्वीर सी !!

जलते रहें दीपक सदा काइम रहे ये रौशनी ,
बस इस दुआ में हाथ ये उट्ठे हैं रहते हर घडी !

आहों में तुम, सांसों में तुम , नींदों में तुम,ख़्वाबों में तुम ,
कैसे रहूँ तेरे बिना तू ही बता ऐ ज़िंदगी !!

तौबा वो तेरी भूल से कल जुगनुओं में खौफ था ,
तू जिस तरह से चाँद को जुल्फों में ढक कर सो गई !!

कैसे कहूँ इस प्यास का रिश्ता नहीं तुझ से भला ,
पाऊं तुझे तो और भी बढ़ जाती है ये तिश्नगी !!

वो चाह कर भी रोक ना पायेगी अपनी ज़ुल्फ़ से ,
जब ले उडेंगी इस तरफ खुश्बू हवाएं सरफिरी !!

क्यूँ तंग नज़रों से मुझे वो देखती है बारहां ,
ऐसी अदा पे आज मैं कह दूँ उसे क्या चोरनी !!

आया न कर तन्हाई में यूँ छम तू ऐ दिलरुबा ,
ये जान लेकर जाएगी एक दिन तेरी ये दिल्लगी !!


अर्श

Saturday, October 16, 2010

क्यूँ मेरे प्यार को ठुकराया था इस , सोंच में हूँ ....

नवमी की सभी को शुभकामनाएं और बधाईयाँ ! ये गीत गुरु देव को समर्पित करते हुए आप सभी के सामने रख रहा हूँ !उनकी बमुश्किल परेशानियां जीतनी जल्दी ख़त्म हो बस इसी की प्रार्थना करता हूँ ! तरही का मौसम आ गया है , मिसरा मिल चुका है(जलते रहें दीपक सदा काइम रहे ये रौशनी ) और उम्मीद करता हूँ सभी जोर शोर से उसकी तैयारी कर रहे होंगे ... बहुत पहले ये गीत लिखा था सोचा आप सभी के साथ बाँट लूँ .... अब आप सभी के सामने है ....

क्यूँ मेरे प्यार को ठुकराया था इस , सोच में हूँ !
क्या ख़ता थी मेरी यह मुझको बता कर जाते !

मैंने तो प्यार को सज़दे की तरह माना था ,
शक्ले इंसान में भी तुमको खुदा जाना था ,
क्या कोई गल्त बात मुझमे लगी थी तुमको ,
बात ये थी तो कोई दाग़ लगा कर जाते ....
क्या ख़ता थी ....

तुम्हारी याद मेरी धडकनों का हिस्सा है ,
तलब तुम्हारी जैसे आज का ही किस्सा है ,
तुम्हीं रगों में मेरी खूं के साथ बहते हो ,
अपने हिस्से से मुझे खुद ही जुदा कर जाते ...
क्या ख़ता थी ....

चूड़ियों की है खनक अब भी मेरे कानों में ,
पायलों की यहाँ रुनझुन दरो-दीवारों में ,
कोई शिकवा नहीं तुम से मगर है ग़म ये ही ,
एक झूठी ही मुहब्बत तो जता कर जाते ....
क्या ख़ता थी ....

तुम्हारी फिक्र लगी रहती है मुझे अब भी ,
दुआओं को मेरे ये हाथ हैं उठे अब भी ,
तुम बहुत दूर हो मैं जानता हूँ फिर भी ये ,
पास आकर मुझे एक बार जता कर जाते ....
क्या ख़ता थी.....

क्यूँ मेरे प्यार को ठुकराया था इस ,सोच में हूँ !
क्या ख़ता थी मेरी यह मुझको बता कर जाते !!

अर्श



Tuesday, September 21, 2010

प्यार जब है तो क्यूँ छुपाते हो ...

और फिर इस वायदे के साथ की नयी ग़ज़ल लगाऊंगा एक हल्की फुल्की ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ , हालाँकि ये अभी तक गुरु जी के द्वारा इस्लाह नहीं की गयी है , बहन ( कंचन)जी के बार बार कहने पर लगा रहा हूँ !! बगैर किसी विशेष भूमिका के ग़ज़ल हाज़िर कर रहा हूँ ! उम्मीद करूँगा गलतिओं को इंगित करेंगे और परामर्श देंगे !
गुरु जी के इंतज़ार में इस विश्वास के साथ की वो जल्द अपनी परेशानियों से बाहर आजाएं !!


दर्द तुम बे-वजह बढाते हो !
प्यार जब है तो क्यूँ छुपाते हो !!

अब तो हिम्मत जवाब दे देगी ,
जिस तरह मुझको आजमाते हो !!

क्या हवाओं ने तुमको चूमा है ,
अब नज़र हर तरफ जो आते हो !!

आ भी जाओ की दिल नहीं लगता ,
तुम बड़े वो हो रूठ जाते हो !!

क्या कोई आस-पास बैठा है ,
बात करने में क्यूँ लजाते हो !!

इश्क में डूबी अपनी आँखों का ,
बोझ यूँ कैसे तुम उठाते हो !!

ज़िंदगी तयशुदा नहीं होती ,
अर्श क्यूँ इसको भूल जाते हो !!

Friday, September 10, 2010

मेरे नाम से कह दो मुझको बुलाए ...

दिनों बाद एक पुरानी ग़ज़ल लेकर हाज़िर हूँ , सोंचा कुछ न कुछ तो चलता रहे ! सबसे पहले आप सभी को ईद , गणेश चतुर्थी और हरियाली तीज की ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं ! ये ग़ज़ल साल के शुरुआत में तरही के लिए लिखी गयी थी आदरणीय गुरु देव के लिए ! आप सभी का प्यार फिर से चाहता हूँ अगले अंक में नई ग़ज़ल के साथ आऊंगा इसी वादे के साथ !!

हवाओं में खुशबू ये घुल के बताए!
वो खिड़की से जब भी दुपट्टा उडाए !!

मचलना बहकना शरम जैसी बातें ,
ये होती हैं जब मेरी बाँहों में आए !!

उनींदी सी आँखों से सुब्ह को जब भी ,
मेरी जान कह के मेरी जां ले जाए !!

अजब बात होती है मयखाने में भी ,
जो सब को संभाले वो खुद लडखडाए !!

वो शोखी नज़र की बला की अदाएं ,
ना पूछो वजह क्यूँ कदम डगमगाए !!

वो हसरत से जब भी मुझे देखती है ,
मुझे शर्म आए मुझे शर्म आए !!

नज़ाक़त जो उसकी अगर देखनी हो ,
मेरे नाम से कह दो मुझको बुलाए !!

शरारत वो आँखों से करती है जब भी ,
मेरी जान जाए मेरी जान जाए !!

मुझे जब बुला ना सके भीड़ में तो,
छमाछम वो पायल बजा कर सुनाए !!

उम्मीदों में बस साल दर साल गुजरे ,
न जाने नया साल क्या गुल खिलाए !!

अर्श

Tuesday, June 29, 2010

डा. कुमार विश्वास,सिद्धार्थ नगर और कवि सम्मलेन



नुसरत दीदी , गुरु जी , मोनिका दीदी , गौतम भाई और वीनस
तमाम ब्यास्तताओं और कठिनाइयों के बावजूद जब डा. कुमार विश्वास गौतम बुद्ध की पावन धरती पर पहुंचे तो सारा सिद्धार्थ नगर झूम उठा !मैं ये बात कर रहा हूँ २६ जून की उस ऐतिहासिक शाम के बारे में , सिद्धार्थ नगर में एक कवि सम्मलेन का आयोजन किया गया था , संस्था का नाम है नवोन्मेष !एक ऐसी संस्था जिसने नई पीढ़ी को साहित्य के दर्शन कराने का बीड़ा उठाया है , जीतनी इस संस्था की तारीफ की जाये कम है ! सारे ही नौजवान जिस लगन से इस आयोजन को सफल बनाने में जुटे थे लग रहा था हिंदी को अब को खतरा नहीं ! विजित सिंह जो मुश्किल से २१ या २२ साल का एक लड़का है , कहीं से भी कम आंकना इस नौजवान के लिए छोटी बात है
विजित के साथ मैं
इस कवि सम्मलेन को सफल बनाने में इस नौजवान ने जतनी मेहनत की वो काबिलेतारीफ है ! इस हसीन शाम का हिस्सा बनने का सौभाग्य मुझे भी मिला !
दो दिवसीय इस आयोजन में अंतिम दिन कवि सम्मलेन की तिथि तय थी, दिल्ली से डा. कुमार विश्वास , भोपाल से नुसरत दीदी , रमेश यादव जी ,लखनऊ से सर्वत जमाल जी , सीहोर से गुरु जी , मोनिका दीदी , और डा. आज़म साहब, सहरसा से गौतम भाई, अलाहाबाद से वीनस भी आमंत्रित थे , इस तरबतर कर देने वाली गर्मी में इतनी दूर पहुंचना ही अपने आप में साहस की बात है,मैं भी खुश था इन सभी लोगों से मिलने के लिए!अगर इन सभी को एक जगह लाने का श्रेय दिया जाये तो वो बहन कंचन को जाता है और एक मंच पर लाने का काम बखूबी गुरु जी ने किया !
मंच पर आसीन सभी
गुरु जी द्वारा मंच संचालन
करिश्माई डा. विश्वास
इस कवि सम्मलेन की सफलता के लिए मैं आश्वस्त था क्यूँ की कुमार विश्वास जिस कवि सम्मलेन में शरीक होने को हों वो खुद उसकी जमानत ही है !मैं भी पहली बार ही इस करिश्माई इंसान से मिल रहा था रोमांचित भी था के मैं जहां रहता हूँ दिल्ली में वहां से सिर्फ चंद किलोमीटर पर ही कुमार साब रहते हैं मगर मिलना मुनासिब ना हो सका कभी !

आज नौजवान की दिल की धड़कन बने इस करिश्माई इंसान के बारे में यही कहूँगा के सच में वो धडकनों में बसने का पूरा हक़ रखते हैं ! आज उनकी शोहरत से सभी रश्क करते हैं मगर उसके पीछे की उनके कठिन संघर्ष को कोई नहीं जानता , कितनी मेहनत की है उन्होंने इस मुकाम तक पहुँचाने के लिए शाम को रेस्ट हाउस में बैठ कर गप्पे मरने के दौरान उन्होंने सारी बातें मुझसे और गुरु जी से की सच कहूँ तो उनके लिए करिश्माई इंसान ही कहूँगा उन्हें !
ये मेरी खुशकिस्मती ही है के मैं उनसे और गुरु जी से साथ में मुखातिब था !शायद किसी पुण्य कर्म किये होंगे कभी! गौतम भाई , कंचन बहन , वीनस और मेरा किसी भी तरह का प्रथम कवि सम्मलेन था मंचीय जो शायद ज़िंदगी भर ना भूलपाने वाली शाम थी वो ! हम चारो धन्य ही हैं के अपनी पहली मंचीय प्रस्तुति में गुरु जी और डा. विश्वास के सामने थे !
सभी ने अपनी प्रस्तुति से सिद्धार्थ नगर के लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया , दर्शकों की भी तारीफ़ करनी होगी जिस हिसाब से वो साथ दे रहे थे वो काबिले गौर बात थी! जो हज़ारों की संख्या में आकर और अपनी जिस शालीनता से सुन रहे थे दर्शा रहे थे ,सच कहूँ सिद्धार्थ नगर के लोगों को सलाम करता हूँ !
गुरु जी की कविता दर्द बेचता हूँ मैं , रमेश यादव जी की कविता ये पिला बासन्तीय चाँद , नुसरत दीदी की ग़ज़ल टूट जाऊं बिखर जाऊं क्या करूँ, मोनिका दीदी की सरस्वती वन्दना और , इससे बेहतर है के मुलाक़ात ना हो , गौतम भाई की उड़स ली चाभी गुछियों वाली , बहन जी की ज़मीं अपनी जगह आसमान अपनी जगह , वीनस की ग़ज़ल ना मुकदमा ना कचहरी , ने लोगों को झूमा कर रख दिया ,...
मगर जब डा. विश्वास की बारी आयी तो लोगों ने खड़े होकर उनका स्वागत किया अपना मज़ीद कलाम कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है जैसे ही शुरू किया लोग की धड़कने जैसे थम सी गयी , जब तक गाते रहे लोग खड़े होकर तालियों से स्वागत करते रहे! सही तौर पर कही जाए तो डा. विश्वास जो झंडा कविता के लेकर आगे आगे चल रहे हैं सच में कविता सुरक्षित है इस देश में ! अपने बिना रुके दो घंटे की कविता पाठ में दर्शकों को बांधे रखना डा. विश्वास के ही बूते की बात है! इस पुरे दौर में शुद्ध रूप से कविता पाठ के दौरान डा . साब ने चकित कर दिया पूरे सिद्धार्थ नगर को और कविता के जिस रस को सामने रखा सबके सभी आनंद विभोर हो गए !
आयोजन की समाप्ति के बाद नए लड़के और लडकियां औटोग्राफ के लिए जैसे टूट पडे उनपर !रात्री भोजन के पश्चात हम सभी घर के सामने बैठे रहे सुबह तक उस दौरान भी डा. साब ने अपनी तज़रबा को हम सभी के साथ बांटा ! सच में यह इंसान नहीं चमत्कार ही है इस देश के लिए और कविता के लिए!


अर्श

Friday, June 25, 2010

मेरे महबूब से वो जल रहे हैं ...

हालाँकि गर्मी से निजात अभी पूरी तरह से नहीं मिल रही , मगर कुछ बुन्दा बांदी होने लगी है !और अब ग़ज़ल जो धडकनों में दफ्न है, मचलने को आतूर होने लगी है , इसी सिलसिले में आज एक मुक्तक पेश कर रहा हूँ , अगर कभी ग़ज़ल मुकम्मिल बन गयी तो जरुर आप सभी के सामने रखूँगा ....

सितारे हाँथ अपने मल रहे हैं !
मेरे महबूब से वो जल रहे है !!

सियासत करने वालों को भी देखा
यक़ीनन पहले वो अजमल रहे हैं !!

अर्श

Monday, June 7, 2010

शुक्रगुज़ार हूँ आप सभी का ...


आज ब्लॉग की तीसरी सालगिरह है और सुबह से इसी उहापोह में हूँ के क्या कहूँ और क्या लिखूं, खैर कुछ समझ तो अभी तक नहीं आया इसलिए बस ये केक आप सभी के हवाले किये जा रहा हूँ ! और इस वादे के साथ के बहुत जल्द ही एक खुबसूरत ग़ज़ल के साथ हाज़िर होने वाला हूँ ! तीसरा साल मनाने की स्थिति में तभी हूँ जहां आप सभी के प्यार और आशीर्वाद के बगैर पहुंचना नामुमकिन ही है ! आप सभी ने जिस तरह से मेरी हौसला आफजाई की है और मुझे प्रेरित किया है बेहतर से बेहतर लिखने के लिए उसका मैं दिल से शुक्र गुज़ार हूँ... और तमाम उम्र ऋणी रहूँगा ! ये केक मेरी गूरू कुल की सबसे लाडली बहन के तरफ से आया है सो इसका भरपूर स्वाद आप सभी भी चखें....
इस ब्लॉग जगत ने बहुत कुछ दिया है मुझे अगर उन सभी चीजों के बारे में लिखने बैठ जाऊं तो दो तिन पोस्ट ऐसे ही लिख डालूँ ...पूजनीय गुरू देव ,आदरणीय द्विजेन्द्र द्विज जी ,श्रधेय प्राण शर्मा जी , श्रधेय महावीर जी ,श्रधेय सर्वत जमाल जी ,श्रधेय मुफलिस जी , मेरे गूरू भाई बहन ,माँ निर्मला , मनु भाई ,दर्पण,सीमा जी ,डाक्टर अनुराग ,और वो तमाम सज्जन और गुणीजन जिन्होंने मुझे आगे बढ़ते रहने में साथ दिया, को दिल से फ़िर से आभार ब्यक्त करता हूँ !क्षमा चाहूँगा जिन साथियों का नाम नहीं लिख पाया ,उम्मीद है वो मेरी बात और भावनावों को समझेंगे !

गुरुवर का तो आभार भी ब्यक्त नहीं कर सकता क्यूंकि आज जो भी हूँ वो उनका दिया हुआ है !

उम्मीद करता हूँ के आप सभी अपना स्नेह और प्यार ऐसे ही मेरे ऊपर बरसते रहेंगे आगे भी !
आप सभी का
अर्श

Sunday, May 30, 2010

विरह के रंग (सीमा गुप्ता )


८ मई को जब सीमा जी के विरह के रंग कव्य संग्रह का विमोचन सीहोर में डा. बशीर बद्र , बेकल उत्साही ,राहत इन्दौरी , और नुसरत मेहंदी साहिबा के हाथों हुआ तो इस ऐतिहासिक और स्वर्णिम पल का गवाह मैं खुद हूँ, किस तरह से इस विरह के रंग की सराहना की गयी थी ! ऐसा लगता है के ये ही तो बात है जब सीमा जी ने ब्लॉग पर अपनी कविताओं से लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया था ... और ये एक आज का दिन जब उनकी पहली पुस्तक "विरह के रंग "काब्य संग्रह के रूप में हमारे सामने है !
सच में, मैं खासकर सीमा जी की छंद मुक्त कविताओं का हमेशा ही से प्रशंसक रहा हूँ , जिस भाव और तेज से ये विरह की बात करती हैं , जहन यह सोचने पर मजबूर हो जाता है के आखिर इस मुश्किल बिधा को कैसे ये आसानी से कह लेती हैं... जो वाकई बेहद मुश्किल काम है, विरह के बारे में लिखना बेहद कठिन काम है साहित्य की बिधा में ...
सच कहूँ तो कोई इस तरफ ध्यान भी नहीं देता, इस खालिस पाक लेखन की तरफ ! वरना हमारे साहित्य में वैदेही की तड़प , उर्मिला की पीर , और मांडवी की छटपटाहट को लोग पढ़ते और उनकी इस पीड़ा को भी समझते ! मगर कहीं भी इनके बारे में कोई उल्लेख सात्विक तौर पर नहीं मिलता ... तभी मैं कहता हूँ के विरह को साहित्य में जो स्थान और मुकाम हासिल होनी चाहिए थी वो नहीं हुई और वो हमेशा ही अपनी इस सौतेले ब्यवहार आंसुओं पर बहाई है !
सीमा जी की कविताओं के बारे में वरिष्ठ गीतकार और लेखक श्री हठीला जी खुद कहते हैं के विरह की जिस रूप को सीमा जी ने अपनी कविताओं में रखा है, वहाँ हार वाली बात है ही नहीं , वहां एक संघर्ष है जो जीवन को कहीं से भी विचलित नहीं होने देती ! एक तप है ,एक साधना है ,एक पूर्ण जीवन है, इस विरह की कविताओं में जो हर संवेदनशील मन को अपने से प्रतीत होते हैं ! ये कहना सही भी है !

इसका उदाहर इस छोटी से बात से देखें की ....
मुझसे मुह मोड़ कर तुमको जाते हुए मूक दर्शक बनी देखती रह गई .
क्या मिला था तुम्हे मेरा दिल तोड़कर ज़िंदगी भर यही सोचती रह गई


इन चंद लइनों में एक विरहिन के जो दर्द को इन्होने उकेरा है वो अपने आप में ज़मानत है इस विरह के रंग के लिए , जो सिर्फ सीमा जी के बूते की ही बात है !
हिंदी की शब्दों का समिश्रण जिस तरह से इन्होने किया है साथ ही कुछ ऐसे शब्द जो मूलतः विरह के लिए ही बने हों जैसे - 'बिलबिलाना " ऐसे शब्द बहुत ही कम पढने को मिलते है...
बिलबिला के इस दर्द से
किस पनाह में निजात पाऊं...
तूने वसीयत में जो दिए,
कुछ
रुसवा लम्हे ,
सुलगती तन्हाई,
जख्मों के कुछ नगीने ...
क्या खूबसूरती से इन्होने अपनी शिकायत की है , लेखनी में यही तो धार है तो मानस को झकझोर के रख देती है ...
विरह में शिकायत तो होती है मगर उसका तरिका अलग हो तो और भी खुबसूरत हो जाए ... मुझे जहाँ तक लगता है के शिकायत, और नहीं हार, के बीच में इन की कवितायेँ हैं जिसके लिए बरबस ही मुखमंडल से वाह की ध्वनि फूटती है ...
सबसे पहली कविता....
ह्रदय के जल थल पर अंकित
बस चित्र धूमिल कर जाओगे
याद तो फ़िर भी आओगे ...

कमाल ही है ये सब....
एक छोटी सी कविता ने जिस तरह से मन मोह लिया आखिरी पन्ने पर जब इसे मैंने पढ़ा ...
बिना झपकाए मैं
अपलक देखूं
तुम को देखने की
अपनी ललक देखूँ !
इस भाव सौंदर्या के लिए सीमा जी को दिल से करोडो बधाई ...
लगभग ९० कवितायेँ और कुछ गज़लें भी हैं इस काव्य संग्रह में जो आपको विरह के सारे ही रंग से ओत प्रोत करेगा और बताएगा के विरह रंगहीन नहीं होता उसमे भी एक रंग है जिससे लोगों ने सौतेला ब्यवहार किया है ...
बस उनके इस शे'र से विदा लेता हूँ के ...
ज़िंदगी का ना जाने मुझसे और तकाज़ा क्या है।
इसके दामन से मेरे दर्द का और वादा क्या है
क्या खूब शे' कहा है इन्होने ....
विरह के रंग में कुछ ऐसी कवितायेँ हैं जो चाहती हैं के उन्हें और विस्तार दी जाए ताकि वो मुकम्मिल तरीके से अपनी शिकायत को सौंदर्य बोध से लोगों के और करीब पहुँच सके !
सीमा
जी ब्लॉग जगत में किसी भी परिचय की मोहताज़ नहीं हैं जिस खूबसूरती से ये विरह के रंग का सौन्दर्यीकरण करती हैं उस बात को कहने के लिए जो दिली ताकत चाहिए वो मुमकिन है आज तक किसी ने नहीं दिखाई ....

अल्लाह मिक्यान इन्हें खूब बरकत दे और इनकी लेखनी की धार और तेज़ करे जिससे यह विधा और आफताब हो ...
शिवना प्रकाशन को भी इस काव्य संग्रह के लिए ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं ...
शिवना प्रकाशन से प्रकाशित यह काव्य संग्रह हालिया ही है,जो पठनीय और संग्रहनीय है , जिसका मूल्य मात्र २५० /- रुपये हैं!
प्रकाशक का पता ----
शिवना प्रकाशन पी.सी. लैब ,
सम्राट कॉमप्लेक्स बेसमेंट सब स्टैंड ,
सीहोर - ४६६००१
फोन
... ०९९७७५५३९९

अर्श

Saturday, May 15, 2010

साहित्य , सुबीर और सीहोर ...



सच कहूँ तो आजकल ठीक से नींद नहीं आती , पता नहीं किस ख़ाब को हक़ीकत होते देख लिया है मैंने ! हाँ सच ही तो है और ये बात है उस जगह की जहां साहित्य की सरिता बहती है, जिसे मैं सीहोर कहता हूँ ! ८ तारीख मेरे जीवन का सबसे हसीन या स्वर्णिम क्षण कह सकते हैं जब गुरु जी , जिनसे मैं ग़ज़लों की बारीकियां सीखता हूँ , और जनाब बशीर बद्र जिनको शुरू से पढता आया हूँ के दर्शन हुए ! उस एक पल को जिस तरह से मैं जी रहा था उसके लिए उपयुक्त शब्द तो नहीं हैं मेरे पास बस मैं अपने सपने को हक़ीकत में जी रहा था , इतना ही कहूँगा ! जनाब बेकल उत्साही और राहत इन्दौरी साहब जैसे उस्ताद शाईरों से मिलना और उनसे बातें हो जाना अपने आप में शौभाग्य की बात है ! मैं सच कहूँ तो ये सारी खुशियाँ अभी तक समेट नहीं पा रहा पूरी तरह से !
अपने सबसे चहेते शाईर जनाब बशीर बद्र के साथ


जनाब बेकल उत्साही और हठीला जी

राहत साहब के साथ हम चारो

उस एतिहासिक कार्यक्रम के बारे में तो हर तरफ चर्चाएँ हुई हैं और सभी ने खूब तारीफें की है , मगर उसके बाद एक और छोटा सा कार्यक्रम किया गया था जो प्रसिद्ध गीतकार आदरणीय हठीला जी के यहाँ हुआ !
गुरु जी कविता पाठ करते हुए

दुसरे दिन का यह कार्यक्रम यूँ कहें के निज़ी तौर पे था , जहां हमें साक्षात् रूप में गुरु जी को सुनने का मौक़ा मिला , सच कहूँ तो ये पल सारे ही पलों से अविस्मरनीय था, जब गुरु जी को सुन रहा था ! सच कहूँ तो शुद्धरूप से सरस्वती उनके कलम की नोक पर और आवाज़ में कंठ में बस्ती हैं ! गुरु जी को साक्षात् सुनना अपने आप में गौरव और भाग्य की बात है !
गुरु भाई रवि , अंकित, और वीनस

इस छोटे से आयोजन में सभी लोगों ने सिरकत किये जहाँ मुझे अपने गुरु भाईयों , जिसमे भाई रवि, अंकित और वीनस को सुनने का मौक़ा मिला वहीँ श्री रमेश हठीला और बड़ी बहन मोनिका हठीला को सुन मन गदगद हो गया ! मंच का संचालन अंकित ने संभाला जो वाकई अपने आप में एक साहस की बात है , पहली दफा सभी को सुनना अपने आप में सुखद अनुभूति कहे तो सार्थक बात होगी !
जिस तरह से रवि भाई गीत लिखते हैं और गाने में अपनी पूरी हक़ अदा करते हैं उसी तरह से वीनस और अंकित भी अपने शेरियत में कोई कसर नहीं छोड़ते !
फिर कुछ नए लिख्खाड़ों को सुनने का भी मौक़ा मिला जिन्हें सुन सभी रोमांचित हो रहे थे !
जन्म दिन की विशेष बधाई

इसके बाद का समय था अंकित के जन्म दिन को मनाने का , खूब हंगामा किये हमने और खूब जश्न मनाये , एक शुद्ध मिठाई थी जो मूलतः गुजरात से आई हुई थी मोनिका बहन जी के यहाँ से , वाह क्या स्वाद थी उसमे ! मैंने दो ले लिए अपने आदत के हिसाब से !
बाटी और दाल हठीला माँ की हाथ का ना भूल पाने वाली रात्री भोज में शामिल है ! और साथ में चटनी ! गुरु जी को बाटी के चूरमे के साथ शक्कर लेना ज्यादा पसंद है तभी कहूँ इतनी मीठी आवाज़ कैसे है ! सभी आगंतुकों को स्मृति चिन्ह भेंट की गयी ! और ऐसी स्मृतियाँ जो जीवन भर ना भूल पाने वाली बात है !
अपने गुरु भाईयौं से मिलना , और उनके साथ दो दिन गुजारना सच में क्या खूब अनुभव रहा है ! परी और पंखुरी के साथ कैरम खेलना और उनकी भोली शिकायतें सोच कर कभी कभी खुद हस पड़ता हूँ !
कुछ एक कमी रही जिसमे बहन जी (कंचन ) और भाई गौतम जी की अनुपस्थिति हमेशा ही खली , जो कुछ सोचा था के ऐसे करेंगे वेसे करेंगे धरा का धरा ही रह गया इन दोनों के साथ , सच तो यही है के समय सबसे बड़ा बलवान होता है !इनकी कमी सभी ने महसूस किये वहाँ पर !
गुरु जी के सानिध्य में हम चारो

जिस तरह से गुरु जी ने हमें प्यार और आशीर्वाद दिया उसके बारे में मैं कुछ बता ही नहीं सकता जिसके लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं !

Wednesday, March 24, 2010

विरह के रंग की सीमा ...

गुफ्तगू उनसे रोज होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता....
बशीर बद्र का यह शे' वाकई यहाँ फिट बैठता है , ऐसा लगता है के ये ही की तो बात है जब सीमा जी ने ब्लॉग पर अपनी कविताओं से लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया था ... और ये एक आज का दिन जब उनकी पहली पुस्तक "विरह के रंग "काब्य संग्रह के रूप में हमारे सामने है !
सबसे पहले तो बधाई हमारे तरफ से और तमाम उन ब्लॉग से जुड़े लोगों की तरफ से जिन्होंने इन्हें सराहा प्यार और आशीर्वाद से नवाज़ा है !
इस काव्य संग्रह के बारे में यहाँ और कुछ पढ़ें....और यहाँ भी ....

सच में मैं खासकर सीमा जी की छंद मुक्त कविताओं का हमेशा ही से प्रशंसक रहा हूँ , जिस भाव और तेज से ये विरह की बात करती हैं , जहन यह सोचने पर मजबूर हो जाता है के आखिर इस मुश्किल बिधा को कैसे ये आसानी से कह लेती हैं... जो वाकई के मुश्किल काम है विरह के बारे में लिखना बेहद कठिन काम है साहित्य की बिधा में ...
सच कहूँ तो कोई इस तरफ ध्यान भी नहीं देता इस खालिस पाक लेखन की तरफ ! वरना हमारे साहित्य में वैदेही की तड़प , उमिला की पीर , और मांडवी की छटपटाहट को लोग पढ़ते और उनकी इस पीड़ा को लोग समझते ! मगर कहीं भी इनके बारे में कोई उल्लेख सात्विक तौर पर नहीं मिलता ... तभी मैं कहता हूँ के विरह को साहित्य में जो स्थान और मुकाम हासिल होनी चाहिए थी वो नहीं हुई और वो हमेशा है अपनी इस सौतेले ब्यवहार आंसुओं पर बहाई है !
सीमा जी की कविताओं के बारे में वरिष्ठ गीतकार और लेखक श्री हठीला जी खुद कहते हैं के विरह की जिस रूप को सीमा जी ने अपनी कविताओं में रखा है वहाँ हार वाली बात नहीं है वहां एक संघर्ष है जो जीवन को कहीं से भी विचलित नहीं होने देती ! एक तप है ,एक जीवन है, इस विरह की कविताओं में जो हर संवेदनशील मन को अपने से प्रतीत होते हैं ! ये कहना सही भी !

इसका उदाहर इस छोटी से बात से देखें की ....
मुझसे मुह मोड़ कर तुमको जाते हुए मूक दर्शक बनी देखती रह gaee .
क्या मिला था तुम्हे मेरा दिल तोड़कर ज़िंदगी भर यही सोचती रह गई

इन चाँद लइनों में एक विरहिन के जो दर्द इन्होने उकेरा है वो अपने आप में कमाल की बात है , जो सिर्फ सीमा जी के बूते की ही बात है !
हिंदी की शब्दों का समिश्रण जिस तरह से इन्होने किया है साथ ही कुछ ऐसे शब्द जो मूलतः विरह के लिए ही बने हों जैसे - 'बिलबिलाना " ऐसे शब्द बहुत ही कम पढने को मिलते है...
बिलबिला के इस दर्द से
किस पनाह में निजात पाऊं...
तूने वसीयत में जो दिए,
कुछ
रुसवा लम्हे ,
सुलगती तन्हाई,
जख्मों के कुछ नगीने ...
क्या खूबसूरती से इन्होने अपनी शिकायत की है , लेखनी में यही तो धार है तो मानस को झकझोर के रख देता है ...
विरह में शिकायत तो होती है मगर उसका तरिका अलग हो तो और भी खुबसूरत हो जाए ... मुझे जहाँ तक लगता है के शिकायत और नहीं हार के बीच में इन की कवितायेँ हैं जो बरबस ही मुखमंडल से वाह की ध्वनि फूटती है ...
सबसे पहली कविता....
ह्रदय के जल थल पर अंकित
बस चित्र धूमिल कर जाओगे
याद तो फ़िर भी आओगे ...

कमाल ही है ये सब....
एक छोटी सी कविता ने मेरा मन मोह लिया आखिरी पन्ने पर जब इसे मैंने पढ़ा ...
बिना झपकाए मैं
अपलक देखूं
तुम को देखने की
अपनी ललक देखूँ !
इस भाव सौंदर्या के लिए सीमा जी को दिल से करोडो बधाई ...
लगभग ९० कवितायेँ और कुछ गज़लें भी हैं इस काव्य संग्रह में जो आपको विरह के सारे ही रंग से ओत प्रोत करेगा और बताएगा के विरह रंगहीन नहीं होता उसमे भी एक रंग है जिससे लोगों ने सौतेला ब्यवहार किया है ...
बस उनके इस शे' से विदा लेता हूँ के ...
ज़िंदगी का ना जाने मुझसे और तकाज़ा क्या है।
इसके दामन से मेरे दर्द का और वादा क्या है
क्या खूब शे' कहा है इन्होने ....
सीमा जी ब्लॉग जगत में किसी भी परिचय की मोहताज़ नहीं हैं जिस खूबसूरती से ये विरह के रंग का सौन्दर्यीकरण करती हैं उस बात को कहने के लिए जो दिली ताकत चाहिए वो मुमकिन है आज तक किसी ने नहीं दिखाई ....
अम्बाला में जन्मी और मास्टर डिग्री के उपरांत नव शिखा पोली पैक में महा प्रबंधक के हैसियत से काम कर रही हैं पाठक खुद सीमा जी से संपर्क कर सकते हैं इस पुस्तक के लिए और उन्हें बधाई भी दें -०९८९१७९५३१८ ... इनकी कुछ किताबे क्वालिटी सिस्टम और मैनेजमेंट पर आयी हैं और खूब सराही गयी हैं ....
भगवान् इन्हें खूब बरकत दे और इनकी लेखनी की धार और तेज़ करे जिससे यह विधा और आफताब हो ...
शिवना प्रकाशन को भी इस काव्या संग्रह के लिए ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं ...
शिवना प्रकाशन से प्रकाशित यह काव्य संग्रह हालिया ही आई है जिसका मूल्य मात्र २५० /- रुपये हैं!
प्रकाशक का पता ----
शिवना प्रकाशन पी.सी. लैब ,
सम्राट कॉमप्लेक्स बेसमेंट सब स्टैंड ,
सीहोर - ४६६००१
फोन
... ०९९७७५५३९९

अर्श