Saturday, October 17, 2009

उंगलियाँ इसलिए खुबसूरत हुई ...


सबसे पहले तो आप सभी को दिवाली की समस्त शुभकामनाएं


गूरू जी के महफ़िल में तरही मुशायरा का आयोजन पुरे शीर्ष पर चल रहा है और खूब सारे लोगों ने जम के गज़लें कही हैं ... तरही का मिसरा है
दीप जलते रहें झिलमिलाते रहें

इस तरही में मैंने भी कुछ कहने की जुर्रत की है जो आप सभी के सामने प्यार और आर्शीवाद के लिए रख रहा है तरही में में एक छुट ये थी की आप रहे / रहें किसी पे भी ग़ज़ल कह सकते थे . गूरू जी के मेहनत के आगे नतमस्तक हूँ उनकी तबियत ख़राब है और सारी दुआएं उनके लिए जल्दी ठीक हो जायें ....तो लीजिये हाज़िर है ये मुलायम सी ग़ज़ल ... आहिस्ते पढ़ें यही गुजारिश करूँगा ....



दीप जलते रहे झिलमिलाते रहे ।
हम आजाबों से इनको बचाते रहे ॥

वो हमें इस तरह आजमाते रहे
शर्त हमसे लगा, हार जाते रहे

उंगलियाँ इसलिए खुबसूरत हुई
प्यार का नाम लिखते मिटाते रहे

मिल गया है उन्हें पैर में घाव लो
फूल कदमों तले जो दबाते रहे

हम बहुत दूर तक लो कदम से कदम
फासले दुश्मनी के मिटाते रहे

मखमली बिस्तरें देख घबरा गए
रोड पर जो दरी को बिछाते रहे

खिंच दूँ और चादर तो फट जायेगी
पेट पैरों में अब तक छुपाते रहे

अर्श'चिठ्ठी नही देता है डाकिया
टकटकी द्वार पर हम लगाते रहे

प्रकाश'अर्श'
१७/१०/०९

Sunday, October 11, 2009

प्रणाम गुरुवर आपके जन्मदिन पर आपको

सुबह जैसे ही उनीदीं सी आँख खुली उल्लास और हर्ष जैसे मेरे कमरे में पसरे हुए थे , खामोशी और बोरियत पता नही कहाँ दुबक गए थे ,सोचा तो था के रात में ही कॉल कर के जन्म दिन की बधाई दूँ फ़िर कहा ये सही नही होगा सुबह कॉल किया तो बीजी मिला कॉल इतने में कल खरीदी गयी पुस्तक को पलट रहा था नया ज्ञानोदय और उसमे गूरू जी की लिखी कहानी "प्रेम क्या होता है ?" प्रेम महा विशेषांक वाले अंक पे छपी दिखी और ये तो मेरे लिए जैसे चमत्कार की तरह निकला , आँखें चौंधिया गयी मेरी तो , और फ़िर तुंरत गूरू जी को कॉल किया वो हमेशा की तरह समय पे अपने दफ्तर में मिले मैं आश्चर्य चकित के आज के दिन यहाँ क्या कर रहे हैं !? फ़िर बातें हुई और उनको जन्म की बधाई दी मेरे साहित्य सृजन में मेरी रूचि और मेरी साहित्य का संरक्षण , मुझे सही मार्गदर्शन , ग़ज़ल की बरिकिओं के बारे में बताना इन सभी चीजो का श्रेय आदरणीय गूरू जी को ही जाता है साहित्य के बारे में उनकी लगनशीलता और साहित्य की सेवा जिस तरह से वो कर रहे है उसके विषय में यही कहूँगा के साहित्य की देवी को कोई सच्चा उपासक मिल गया है जो श्रवण की तरह अपने कंधे पे लेकर भ्रमण कर रहा है और सभी को शिक्षा का ज्ञान दे रहा है
वो हमेशा मुझे कहते हैं के ग़ज़ल ऐसा कहो के तुम्हारी ग़ज़ल शे'र ठेले वालों और पान की गुमटी वालों तक पहुंचे तभी सच्ची और अच्छी ग़ज़ल कही जाती है , शे'र ऐसा कहो के लोगों के जुबान पर चढ़ के बोले , ये सारी बातें यह साबित करती है के वो कितने बारीक से लोगों की भावनावो और साहित्य की बात को समझते हैं... इनके वीर रस के कवितावों का क्या कहना महारथ हाशिल है इन को .....
इनके प्रकृति प्रेम को आप सहजता से लें और देखें की ये कितने घुल मिल कर बातें करते हैं इन से भी ... गूरू जी के बारे में कुछ बातें खास हैं वो ये के उनको तरह तरह ब्यंजन चखने का बहुत ही शौक है एक बारी जब इनसे मिला था तो इसकी जानकारी लगी अमूमन उनको देख कर ऐसा बिल्कुल नही लगता के वो खाने के इतने शुं हैं... यहाँ तक के वो गोलगप्पे के ज्यादा शौकीन हैं ....
बेहद सरल स्वभाव और मृदुभाषी इस इंसान के लिए क्या कहूँ कुछ समझ नही आ रहा है थोड़े संकोची हैं मगर बेहद संवेदनशील इंसान हैं.... ऊपर वाले से यही विनती करूँगा के इनको दुनिया की वो तमाम खुशियाँ बख्शे जिसकी ये इक्षा रखते हैं ,साहित्य के प्रति इनकी लगन और कर्म हमेशा ही चरम पे रहे ,॥
आज इस विशेष दिवस पर उनके हमेशा ही मंगल के लिए ऊपर वाले से प्रार्थना करता हूँ ॥ साहित्य रुपी आसमान में ये एक ध्रुव तारे की तरह विराजमान हैं , इनको सदर चरण स्पर्श ....



आपका
अर्श

Thursday, October 1, 2009

तन्हाई तो होती है तन्हाई में ...

सितम्बर का महिना उफ्फ्फ भयावह ... काफी दिनों से गूरू जी के आने का इंतज़ार कर रहा था बेशब्री से मगर ऊपर वाले ने मिलना नही लिख रखा था , अजीबो गरीब हादसे एक पे एक मन को झकझोर के रख दिया था ... खैर ज़िंदगी है और ये सब तो वाजिब ही है ...उधर गूरू भाई गौतम की ख़बर मिली , अल्लाह मियाँ मेरे भईयों को जल्दी दुरुस्तगी बख्शे , अरसे बाद एक ग़ज़ल कहने की कोशिश की है , गूरू का आर्शीवाद मिला है और एक हलकी फुलकी ग़ज़ल आप सभी के सामने लेकर हाज़िर हूँ ताकि लिखने का क्रम ना टूटे... आप सभी के प्यार और आर्शीवाद के लिए ...




दर्द मेरा बढ़ जाता है पुरवाई में ।
उम्र कटी है जख्मों की भरपाई में

बरखा के बादल को देखा जब घिरते
कोयल कूकि कुहुक कुहुक अमराई में

डूब के अब तक मैं भी पार उतर जाता
ग़ालिब कहते डूब इस गहराई में

तेवर गुस्सा रहमत लज्जा साजन का
क्या क्या है और क्या बोलूं हरजाई में

मैं तन्हा कब होता हूँ किसने बोला
तन्हाई तो होती है तन्हाई में

मेरी अर्थी उसकी डोली संग उठी
तब तो दर्द भरा है यूँ शहनाई में

अर्श को देखो नाम कमा के बैठा है
नाम बहुत होता है क्या रुसवाई में ?


प्रकाश'अर्श'
०१/१०/२००९