वक्त ने उनको मोहतरमा बना दिया ।
खुदाया तुमने भी किसको क्या बना दिया ॥
घर से निकला था जो , तकमील के लिए ,
रास्तों ने पैरो में आबला बना दिया ॥
मुझे गुरुर था, बज्म-ऐ-नाज़ पे मगर ,
उस शख्स ने,दार-ओ-रसन जा बना दिया ॥
हाँथ मलता रहा वो उम्र भर ,आखरस
खून को "अर्श" वही रँगे-हिना बना दिया ॥
प्रकाश "अर्श"
०१/१०/२००८
तकमील = मंजिल पे पहुँचना, आबला =छाला ,
रँगे-हिना =मेहंदी का रंग , बज्म-ऐ-नाज़ = माशूक की महफ़िल
दार-ओ-रसन = सूली और फंसी का फंदा , जा = जगह ॥
बहुत बढिया गज़ल है।बधाई।
ReplyDeleteआहा, लाजवाब शब्दों में पिरोयी गयी ग़ज़ल!
ReplyDeleteपढ़वाने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteगजल की क्लास चल रही है आप भी शिरकत कीजिये www.subeerin.blogspot.com
वीनस केसरी
मुझे गुरुर था, बज्म-ऐ-नाज़ पे मगर ,
ReplyDeleteउस शख्स ने,दार-ओ-रसन जा बना दिया ॥
" WOW, VERY GOOD CREATION, MORE OVER USE OF URDU WORDS ARE MIND BLOWIG'
REGARDS
badhiyaa hai guru, par itti urdu samajh mein nahi aati, agar aapne shabdon ke matlab na diye hote to pakka bouncer nikalata :)
ReplyDeleteवीनस जी की सलाह मानने में कोई बुराई नहीं फिर भी आपको बधाई
ReplyDeleteभावबोध बढ़िया है
Vijaydashmi kii shubhakaamayein!
ReplyDelete"HI, Thanks a lot and lot for your B'day wishes and your comments on my blog"
ReplyDeleteWith Regards
अर्श साहब,
ReplyDeleteआप follower widget अपने चिट्ठे पर लगा लें। यह एक उम्दा widget है!
मुआफी चाहता हूँ अर्श साहेब इधर थोड़ा देर से आना हुआ, बेहतरीन और अदब से भरपूर ग़ज़ल
ReplyDeleteउर्दू अरबी शब्दों का हिन्दी अनुवाद देकर बहुत अच्छा किया,बधाई हो सुंदर ग़ज़ल के लिए