गुफ्तगू उनसे रोज होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता....
मुद्दतों सामना नहीं होता....
बशीर बद्र का यह शे'र वाकई यहाँ फिट बैठता है , ऐसा लगता है के ये कल ही की तो बात है जब सीमा जी ने ब्लॉग पर अपनी कविताओं से लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया था ... और ये एक आज का दिन जब उनकी पहली पुस्तक "विरह के रंग "काब्य संग्रह के रूप में हमारे सामने है !
सबसे पहले तो बधाई हमारे तरफ से और तमाम उन ब्लॉग से जुड़े लोगों की तरफ से जिन्होंने इन्हें सराहा प्यार और आशीर्वाद से नवाज़ा है !
सच में मैं खासकर सीमा जी की छंद मुक्त कविताओं का हमेशा ही से प्रशंसक रहा हूँ , जिस भाव और तेज से ये विरह की बात करती हैं , जहन यह सोचने पर मजबूर हो जाता है के आखिर इस मुश्किल बिधा को कैसे ये आसानी से कह लेती हैं... जो वाकई के मुश्किल काम है विरह के बारे में लिखना बेहद कठिन काम है साहित्य की बिधा में ...
सच कहूँ तो कोई इस तरफ ध्यान भी नहीं देता इस खालिस पाक लेखन की तरफ ! वरना हमारे साहित्य में वैदेही की तड़प , उमिला की पीर , और मांडवी की छटपटाहट को लोग पढ़ते और उनकी इस पीड़ा को लोग समझते ! मगर कहीं भी इनके बारे में कोई उल्लेख सात्विक तौर पर नहीं मिलता ... तभी मैं कहता हूँ के विरह को साहित्य में जो स्थान और मुकाम हासिल होनी चाहिए थी वो नहीं हुई और वो हमेशा है अपनी इस सौतेले ब्यवहार आंसुओं पर बहाई है !
सीमा जी की कविताओं के बारे में वरिष्ठ गीतकार और लेखक श्री हठीला जी खुद कहते हैं के विरह की जिस रूप को सीमा जी ने अपनी कविताओं में रखा है वहाँ हार वाली बात नहीं है वहां एक संघर्ष है जो जीवन को कहीं से भी विचलित नहीं होने देती ! एक तप है ,एक जीवन है, इस विरह की कविताओं में जो हर संवेदनशील मन को अपने से प्रतीत होते हैं ! ये कहना सही भी !
इसका उदाहर इस छोटी से बात से देखें की ....सबसे पहले तो बधाई हमारे तरफ से और तमाम उन ब्लॉग से जुड़े लोगों की तरफ से जिन्होंने इन्हें सराहा प्यार और आशीर्वाद से नवाज़ा है !
सच में मैं खासकर सीमा जी की छंद मुक्त कविताओं का हमेशा ही से प्रशंसक रहा हूँ , जिस भाव और तेज से ये विरह की बात करती हैं , जहन यह सोचने पर मजबूर हो जाता है के आखिर इस मुश्किल बिधा को कैसे ये आसानी से कह लेती हैं... जो वाकई के मुश्किल काम है विरह के बारे में लिखना बेहद कठिन काम है साहित्य की बिधा में ...
सच कहूँ तो कोई इस तरफ ध्यान भी नहीं देता इस खालिस पाक लेखन की तरफ ! वरना हमारे साहित्य में वैदेही की तड़प , उमिला की पीर , और मांडवी की छटपटाहट को लोग पढ़ते और उनकी इस पीड़ा को लोग समझते ! मगर कहीं भी इनके बारे में कोई उल्लेख सात्विक तौर पर नहीं मिलता ... तभी मैं कहता हूँ के विरह को साहित्य में जो स्थान और मुकाम हासिल होनी चाहिए थी वो नहीं हुई और वो हमेशा है अपनी इस सौतेले ब्यवहार आंसुओं पर बहाई है !
सीमा जी की कविताओं के बारे में वरिष्ठ गीतकार और लेखक श्री हठीला जी खुद कहते हैं के विरह की जिस रूप को सीमा जी ने अपनी कविताओं में रखा है वहाँ हार वाली बात नहीं है वहां एक संघर्ष है जो जीवन को कहीं से भी विचलित नहीं होने देती ! एक तप है ,एक जीवन है, इस विरह की कविताओं में जो हर संवेदनशील मन को अपने से प्रतीत होते हैं ! ये कहना सही भी !
मुझसे मुह मोड़ कर तुमको जाते हुए मूक दर्शक बनी देखती रह gaee .
क्या मिला था तुम्हे मेरा दिल तोड़कर ज़िंदगी भर यही सोचती रह गई
क्या मिला था तुम्हे मेरा दिल तोड़कर ज़िंदगी भर यही सोचती रह गई
इन चाँद लइनों में एक विरहिन के जो दर्द इन्होने उकेरा है वो अपने आप में कमाल की बात है , जो सिर्फ सीमा जी के बूते की ही बात है !
हिंदी की शब्दों का समिश्रण जिस तरह से इन्होने किया है साथ ही कुछ ऐसे शब्द जो मूलतः विरह के लिए ही बने हों जैसे - 'बिलबिलाना " ऐसे शब्द बहुत ही कम पढने को मिलते है...
हिंदी की शब्दों का समिश्रण जिस तरह से इन्होने किया है साथ ही कुछ ऐसे शब्द जो मूलतः विरह के लिए ही बने हों जैसे - 'बिलबिलाना " ऐसे शब्द बहुत ही कम पढने को मिलते है...
बिलबिला के इस दर्द से
किस पनाह में निजात पाऊं...
तूने वसीयत में जो दिए,
कुछ रुसवा लम्हे ,
सुलगती तन्हाई,
जख्मों के कुछ नगीने ...
किस पनाह में निजात पाऊं...
तूने वसीयत में जो दिए,
कुछ रुसवा लम्हे ,
सुलगती तन्हाई,
जख्मों के कुछ नगीने ...
क्या खूबसूरती से इन्होने अपनी शिकायत की है , लेखनी में यही तो धार है तो मानस को झकझोर के रख देता है ...
विरह में शिकायत तो होती है मगर उसका तरिका अलग हो तो और भी खुबसूरत हो जाए ... मुझे जहाँ तक लगता है के शिकायत और नहीं हार के बीच में इन की कवितायेँ हैं जो बरबस ही मुखमंडल से वाह की ध्वनि फूटती है ...
सबसे पहली कविता....
विरह में शिकायत तो होती है मगर उसका तरिका अलग हो तो और भी खुबसूरत हो जाए ... मुझे जहाँ तक लगता है के शिकायत और नहीं हार के बीच में इन की कवितायेँ हैं जो बरबस ही मुखमंडल से वाह की ध्वनि फूटती है ...
सबसे पहली कविता....
ह्रदय के जल थल पर अंकित
बस चित्र धूमिल कर जाओगे
याद तो फ़िर भी आओगे ...
बस चित्र धूमिल कर जाओगे
याद तो फ़िर भी आओगे ...
कमाल ही है ये सब....
एक छोटी सी कविता ने मेरा मन मोह लिया आखिरी पन्ने पर जब इसे मैंने पढ़ा ...
लगभग ९० कवितायेँ और कुछ गज़लें भी हैं इस काव्य संग्रह में जो आपको विरह के सारे ही रंग से ओत प्रोत करेगा और बताएगा के विरह रंगहीन नहीं होता उसमे भी एक रंग है जिससे लोगों ने सौतेला ब्यवहार किया है ...
बस उनके इस शे'र से विदा लेता हूँ के ...
एक छोटी सी कविता ने मेरा मन मोह लिया आखिरी पन्ने पर जब इसे मैंने पढ़ा ...
बिना झपकाए मैं
अपलक देखूं
तुम को देखने की
अपनी ललक देखूँ !
इस भाव सौंदर्या के लिए सीमा जी को दिल से करोडो बधाई ...अपलक देखूं
तुम को देखने की
अपनी ललक देखूँ !
लगभग ९० कवितायेँ और कुछ गज़लें भी हैं इस काव्य संग्रह में जो आपको विरह के सारे ही रंग से ओत प्रोत करेगा और बताएगा के विरह रंगहीन नहीं होता उसमे भी एक रंग है जिससे लोगों ने सौतेला ब्यवहार किया है ...
बस उनके इस शे'र से विदा लेता हूँ के ...
ज़िंदगी का ना जाने मुझसे और तकाज़ा क्या है।
इसके दामन से मेरे दर्द का और वादा क्या है ॥
क्या खूब शे'र कहा है इन्होने ....इसके दामन से मेरे दर्द का और वादा क्या है ॥
सीमा जी ब्लॉग जगत में किसी भी परिचय की मोहताज़ नहीं हैं जिस खूबसूरती से ये विरह के रंग का सौन्दर्यीकरण करती हैं उस बात को कहने के लिए जो दिली ताकत चाहिए वो मुमकिन है आज तक किसी ने नहीं दिखाई ....
अम्बाला में जन्मी और मास्टर डिग्री के उपरांत नव शिखा पोली पैक में महा प्रबंधक के हैसियत से काम कर रही हैं पाठक खुद सीमा जी से संपर्क कर सकते हैं इस पुस्तक के लिए और उन्हें बधाई भी दें -०९८९१७९५३१८ ... इनकी कुछ किताबे क्वालिटी सिस्टम और मैनेजमेंट पर आयी हैं और खूब सराही गयी हैं ....
अम्बाला में जन्मी और मास्टर डिग्री के उपरांत नव शिखा पोली पैक में महा प्रबंधक के हैसियत से काम कर रही हैं पाठक खुद सीमा जी से संपर्क कर सकते हैं इस पुस्तक के लिए और उन्हें बधाई भी दें -०९८९१७९५३१८ ... इनकी कुछ किताबे क्वालिटी सिस्टम और मैनेजमेंट पर आयी हैं और खूब सराही गयी हैं ....
भगवान् इन्हें खूब बरकत दे और इनकी लेखनी की धार और तेज़ करे जिससे यह विधा और आफताब हो ...
शिवना प्रकाशन को भी इस काव्या संग्रह के लिए ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं ...
शिवना प्रकाशन से प्रकाशित यह काव्य संग्रह हालिया ही आई है जिसका मूल्य मात्र २५० /- रुपये हैं!
प्रकाशक का पता ----शिवना प्रकाशन को भी इस काव्या संग्रह के लिए ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं ...
शिवना प्रकाशन से प्रकाशित यह काव्य संग्रह हालिया ही आई है जिसका मूल्य मात्र २५० /- रुपये हैं!
शिवना प्रकाशन पी.सी. लैब ,
सम्राट कॉमप्लेक्स बेसमेंट सब स्टैंड ,
सीहोर - ४६६००१
फोन न ... ०९९७७५५३९९
अर्श
आदरणीय पंकज सुबीर जी के मार्गदर्शन के तहत विरह के रंग के साथ अपने पहले काव्य संग्रह को साकार रूप में देखना एक उपलब्धि से कम नहीं मेरे लिए. पंकज जी का आभार किन शब्दों में व्यक्त करूं समझ ही नहीं आ रहा.
ReplyDeleteवरिष्ट कवि तथा सुप्रसिद्ध गीतकार श्रद्धेय श्री रमेश हठीला जी का आभार शब्दों में व्यक्त करना मेरे लिए असंभव है , उन्होंने जिस प्रकार से मेरी कविताओं का भाव पकड़ कर भूमिका लिखी है वो अद्युत है. श्री हठीला जी ने मेरी कविताओं को नये और व्यापक अर्थ प्रदान किये उनकी लेखनी को मेरा प्रणाम. शिवना प्रकाशन की टीम वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय श्री नारायण कासट जी , वरिष्ट कवी श्री हरिओम शर्मा दाऊ जी का आभार जिन्होंने संग्रह के लिए कविताओं के चयन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
आभार युवा डिजाइनर सुरेंद्र ठाकुर जी का जिन्होंने मेरी भावनाओ तथा पुस्तक के शीर्षक विरह के रंग को बहुत अच्छा स्वरूप देकर पुस्तक का आवरण प्रष्ट डिजाइन किया और सनी गोस्वामी जी का जिन्होंने पुस्तक की आन्तरिक साज सज्जा तथा कम्पोजिंग का काम बहुत ही सुन्दरता से किया. आभार मुद्रण की प्रक्रिया से जुड़े श्री सुधीर मालवीय जी था मुद्रक द्रष्टि का भी जिन्होंने मेरी कल्पनाओ को कागज पर साकार किया.
आदरणीय पंकज सुबीर जी का बेहद आभार जिनके आशीर्वाद और सहयोग के बिना ये काव्य संग्रह एक सपना ही रह जाता.
regards
" अर्श " किन शब्दों में आपका शुक्रिया अदा करूं समझ ही नहीं आ रहा. सभी ब्लॉग जगत के आदरणीय जनों के आशीर्वाद से हे विरह के रंग का जन्म हो पाया. अर्श जी आपने जिन शब्दों में मेरे काव्य संग्रह को एक नया आयाम और विस्तार दिया है, वो मेरे लिए अनमोल है. आपने जिस तरह विरह के रंग की समीक्षा की है उसके लिए दिल से आभारी हूँ.
ReplyDeleteregards
बहुत बहुत बधाई सीमा जी को उनके काव्य संग्रह "विरह के रंग" प्रकाशन पर। उनके ब्लॉग पर तो उनकी रचनात्मकता के दर्शन होते ही रहते हैं, अब पुस्तक रूप में भी सीमा जी की रचनाओं को पढ़ने का लुफ़्त उठा सकेंगे पाठक। पुन: बधाई !
ReplyDelete"अर्श" जी आपने सीमा जी की पुस्तक पर अपने ब्लॉग पर जानकारी दी, इसके लिए आप भी धन्यवाद के हकदार है। एक बात आपके ब्लॉग को लेकर कहना चाहता हूँ जो इसके रंग संयोजन को लेकर है। भाई, आपने जो ब्लॉग की पृष्ठभूमि में रंग दिया है, उस पर जो रंग आसानी से उभर कर आएं यानि जिस कलर में शब्द/पंक्तियाँ हो वो ऐसा हो कि पाठक को पढ़ने में तकलीफ़ न दे। अब इसी पोस्ट पर देखें- आपने कुछ अशआर अथवा शब्द हरे रंग में दिए हैं, वे आसमानी रंग की पृष्ठभूमि होने के कारण आसानी से पढ़ने में नहीं आते हैं और आँखों को बहुत ज़ोर देना पड़ता है। मैटर के रंग संयोजन की तरफ आप थोड़ा ध्यान दें।
शुभकामनाओं सहित
सुभाष नीरव
मिथुन दा के शब्दों में कहूँ.....??क्या बात....क्या बात.....क्या बात.......!!
ReplyDeleteमिथुन दा के शब्दों में कहूँ.....??क्या बात....क्या बात.....क्या बात.......!!
ReplyDeleteहूँ......तो समीक्षक भी बन गए ......???
ReplyDeleteसीमा जी बहुत बहुत बधाई आपको ......आपका दूसरा संकलन भी जल्द आये दुआ है ......!!
लिखती तो आप अच्छा हैं ही ....कोई शक नहीं अर्श जी पुस्तक की भी एक झलक दिखा देते ...!!
बहुत खूब विवेचन किया है अर्श जी .....
ReplyDeleteमज़ा आ गया ... वैसे ये पुस्तक ले आया हूँ और आनंद ले रहा हूँ आजकल ....
आपके ब्लॉग पर आकर कुछ तसल्ली हुई.ठीक लिखते हो. सफ़र जारी रखें.पूरी तबीयत के साथ लिखते रहें.टिप्पणियों का इन्तजार नहीं करें.वे आयेगी तो अच्छा है.नहीं भी आये तो क्या.हमारा लिखा कभी तो रंग लाएगा. वैसे भी साहित्य अपने मन की खुशी के लिए भी होता रहा है.
ReplyDeleteचलता हु.फिर आउंगा.और ब्लोगों का भी सफ़र करके अपनी राय देते रहेंगे तो लोग आपको भी पढ़ते रहेंगे.
सादर,
माणिक
आकाशवाणी ,स्पिक मैके और अध्यापन से सीधा जुड़ाव साथ ही कई गैर सरकारी मंचों से अनौपचारिक जुड़ाव
http://apnimaati.blogspot.com
अपने ब्लॉग / वेबसाइट का मुफ्त में पंजीकरण हेतु यहाँ सफ़र करिएगा.
www.apnimaati.feedcluster.com
गुफ्तगू उनसे रोज होती है
ReplyDeleteमुद्दतों सामना नहीं होता....
सीमा जी को हार्दिक शुभकामनाएं...शानदार समीक्षा के लिए आपको भी मुबारकबाद...
आदरणीय सुभाष नीरव जी, हरकीरत जी, दिगम्बर जी, माणिक जी, फिरदोस जी आपकी शुभकामनाओ के लिए दिल से आभारी हूँ. बहुत बहुत शुक्रिया.
ReplyDeleteregards
शुक्रिया अर्श जी ,
ReplyDeleteअपनी तारीफ़ से ज्यादा सीमा जी की किताब के बारे में जान कर अच्छा लगा ,समीक्षा के लिए आप बधाई के हक़दार हैं .
अर्श इस किताब से रूबरू कराने के लिए धन्यवाद। सीमा जी को भी इस पुस्तक के प्रकाशित होने की हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteऔर हाँ, अर्श एक बात हमेशा ध्यान में रखो कि वही फांट कलर इस्तेमाल करो, जिससे पढ़ने में सहूलियत हो ना कि आँख गड़ानी पड़े। आसमानी बैकग्राऊंड पर हरे रंग के प्रयोग से पढ़ने वालों को दिक्कत होगी।
रोज़ तुम्हारा एक नया रुख देख रहा हूँ. मैं संजीदगी से कह रहा हूँ कि तुम महानता की तरफ बढ़ रहे हो. कौन आज के युग में दूसरों को गिनता है?
ReplyDeleteरचनाकार और किसी दूसरे के लेखन को सराहे, असम्भव. मगर भाई वाह! सीमा जी जैसे जाने कितने रचनाकार गुमनामी के गर्त में पड़े रह जाते हैं क्योंकि उन्हें वरिष्ठजन तो एक तरफ, हमउम्रों से भी कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता.
इतनी अच्छी रचनाकार से मिलवाने के लिए धन्यवाद.
सीमा जी को मेरी तरफ से शुभकामनायें भेज देना.
समीक्षाये पढना किसी पुस्तक की आत्मा को पढना होता है। और लिखना सबसे कठिन क्योंकि यदि उस आत्मा को कहीं नज़रअन्दाज़ कर दिया तो पुस्तक का मर्म खत्म हो जाता है। आप जहां गज़ल के निपुण फनकार है वहीं समीक्षायें भी गज़ब की करते हैं। सीमाजी को ब्लोग पर पढकर उनकी रचनाओं से अभिभूत तो पहले ही था, उनकी किताब के बारे में थोडा उनके ब्लोग से जाना था, और अब बहुत कुछ आपके ब्लोग से जान गया। अब किताब पाने की हूक़ सी उठ गई है। अर्शजी, बहुत अच्छा लिखते हैं आप।
ReplyDeleteयह काम दुरुस्त किया है आपने.
ReplyDeleteज़्वाह बेटा इतनी सुन्दर और विस्तरित समीक्षा? बहुत अच्छा लगा। गज़ल के अतिरिक्त सभी विधाओं मे तुम अच्छा लिख सकते हो। समझ नही आता क्यों नही लिखते। ये समीक्षा पढ कर सीमा जी की पुस्तक पढनी की उत्सुकता बढ गयी है। कमेन्ट जल्दी मे कर रही हूँ सीमा जी को बधाई और तुम्हें आशीर्वाद्
ReplyDeleteachhi samikhsha likhi hai aapne....
ReplyDeletepadhkar achha laga...
aanewaali rachnaon ka intzaar rahega...
shekhar ( http://i555.blogspot.com/ )
अर्श भाई देर से आया हूँ...देर से भी क्या बहुत देर से आया हूँ...सीमा जी को उनके ब्लॉग पर बहुत पढ़ा है...उन्हें मन के कोमल भावों को अभिव्यक्त करने की कला आती है...ये कला इश्वर सब को नहीं देता...उन्हें इस पुस्तक के प्रकाशन की बहुत बहुत बधाई...हठीला जी और पंकज जी जहाँ एक साथ जुड़ जाएँ वहां सर्व श्रेष्ठ से कम कुछ होता ही नहीं...आप द्वारा की गयी समीक्षा ने भी मन मोह लिया...शब्दों का चयन और विषय पर पकड़ आपकी परिपक्वता को दर्शाती है...
ReplyDeleteनीरज
आप सभी आदरणीय जनों के आशीर्वाद और प्रोत्साहन के लिए दिल से आभारी हूँ.......
ReplyDeleteregards
तुम्हारे लिये किसी सजा की बात करती हूँ सुबीर से मेरे काबू मे तो तुम आओगे नही इतने दिन बाद पोस्ट क्यों लिखते हो? जल्दी से अगली पोस्ट लगाओ । आशीर्वाद्
ReplyDeletebeshak bahot khoob alfaaz rakam kiye hai
ReplyDeleteगुफ्तगू उनसे रोज़ होती है.......
ReplyDeleteसब से पहले तो सीमा जी को
उनकी पुस्तक "विरहा के रंग" के प्रकाशन
और भव्य समारोह में उपस्थिति के लिए
ढेरों बधाई
और अर्श भाई ...आपका आभार , जो आपने
ऐसी सुन्दर, सुरुचिपूर्ण और सटीक समीक्षा कर
ऐसी नायाब कृति से पढने वालों को अवगत करवाया है
और...
सीहोर काव्योत्सव में भाग लेने हेतु
आप को भी बधाई ......
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