वाकई बहुत दिन गुज़र गए ! एक लम्बे समय के बाद फिर से चलिए नई ग़ज़ल के साथ, आप सभी के पास हाज़िर हूँ! हालांकि ग़ज़ल तो पूरानी है, मगर आप सभी के सामने पहली बार आ रही है ... बह'र वही फिलहाल ख़फ़ीफ है इस बार भी ... कुछ ज़्यादा भूमिका नहीं बनाते हुये हाज़िर करता हूँ... इस ग़ज़ल को ... क्यूंकि सफर है, तो चलना है ,और चलने का नाम ज़िन्दगी है !
नाम ज्यूं ही मेरा सुना होगा !
उसने पर्दा गिरा दिया होगा !!
मैं तो ख़ुद जी रहा था टुकडों में,
ख़्वाब टुकडों में पल रहा होगा !!
ज़िक्र मेरा वो सुन के देर तलक ,
पागलों की तरह हंसा होगा !!
अपनी कारीगरी से बादल ने ,
तेरा चेहरा बना दिया होगा !!
मांग बैठा था कुछ ज़ियादा वो
इसलिये कुछ नहीं मिला होगा !!
भूख से रात हो गई लम्बी ,
दिन भी अब मुश्किलों भरा होगा !!
उसकी चाहत भी तो ज़रूरी है ,
बस मेरे चाहने से क्या होगा !!
फिर समन्दर की चाहतें लेकर,
चाँद आँखों में आ गया होगा !!
आँख ने ख़्वाब की तिज़ारत में,
नींद से कुछ लिय दिया होगा !!
अर्श
आँख ने ख़्वाब की तिज़ारत में,
ReplyDeleteनींद से कुछ लिय दिया होगा !!
उफ्फ्फ्फ्फ़ (उधार वाला)
एक बार फिर से देर से आये और हमेशा कि तरह फिर से नायाब अशआर पढ़ने को मिले,
क्या थोडा जल्दी जल्दी नहीं हो सकता ?
जैसे हर महीना कम से कम एक :)
ग़ज़ल का हर शे'र बहुत गहरे अर्थ लिए है ....!
ReplyDeleteमांग बैठा था कुछ जियादा वो
इसलिए कुछ नहीं मिला होगा
बहुत सुंदर भाव और सटीक बात ,
अर्श....
ReplyDeleteबहुत दिनों के बाद आपका कलाम पढ़ा.... वाकई कमाल का लिखते हैं आप. कुछ शेर तो बिलकुल नए से हैं.... कथ्य में भी और विम्ब में भी.
अपनी कारीगरी से बादल ने
तेरा चेहरा बना दिया होगा......
बहुत खूब क्या कहने. अगली ग़ज़ल का इन्तिज़ार रहेगा.
अर्श....
ReplyDeleteबहुत दिनों के बाद आपका कलाम पढ़ा.... वाकई कमाल का लिखते हैं आप. कुछ शेर तो बिलकुल नए से हैं.... कथ्य में भी और विम्ब में भी.
अपनी कारीगरी से बादल ने
तेरा चेहरा बना दिया होगा......
बहुत खूब क्या कहने. अगली ग़ज़ल का इन्तिज़ार रहेगा.
सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकारें /
ReplyDeleteमेरी १०० वीं पोस्ट पर भी पधारने का
---------------------- कष्ट करें और मेरी अब तक की काव्य-यात्रा पर अपनी बेबाक टिप्पणी दें, मैं आभारी हूँगा /
बहुत बढ़िया..
ReplyDelete"भूख से.." और "मांग बैठा था.." शेर खास तौर पर पसंद आये.
बेहतरीन गज़ल।
ReplyDeleteअपनी कारीगरी से बादल ने ..
ReplyDeleteक्या बात है प्रकाश जी ... बहुत समय बाद आए पर धमाका ले कर आए ... बादल तो कुछ न कुछ बनाता ही है ... उनका चेहरा देखने वाली नज़रें भी तो चाहियें ...
आशा है आप कुशल होंगे ...
मांग बैठा था कुछ ज़ियादा वो
ReplyDeleteइसलिये कुछ नहीं मिला होगा !!
भूख से रात हो गई लम्बी ,
दिन भी अब मुश्किलों भरा होगा !!
bahut pyare ash'aar hain arsh
khoobsoorat ghazal ke liye badhai !
उसकी चाहत भी ज़रूरी है
ReplyDeleteमेरे चाहने से क्या होगा?
एक गाने की पंक्ति है
दिलबर मेरे कबतक मुझे ऐसे ही तडपाओगे
मैं आग दिल में लगा दूंगा वो की खुद ही मचल जाओगे
-------------------------------------------------------
मेरे ब्लॉग पे आपका स्वागत है
ड्रैकुला को खून चाहिए, कृपया डोनेट करिये! पार्ट-1
बहुत खूब अर्श भाई. अच्छी ग़ज़ल कही है.
ReplyDeleteमांग बैठा था..............उफ्फ्फ्फ़, मारक शेर है.
फिर समंदर की चाहतें लेकर..... वाह वा
आँख ने ख्वाब की.....................बहुत खूब
काफी दिनों बाद आये लेकिन आये तो रंग जमा दिया.
khoobsurat bangi..
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल।
ReplyDeleteभाई प्रकाश अर्श जी बहुत खूब |आप कमाल का लिखते हैं |बधाई और शुभकामनाएं |
ReplyDeleteविजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व, सभी के जीवन में संपूर्णता लाये, यही प्रार्थना है परमपिता परमेश्वर से।
ReplyDeleteनवीन सी. चतुर्वेदी
AANKH NE KHWAB KI TIJARAT ME
ReplyDeleteNIND SE KUCHH LIYA DIYA HOGA.
KAFI PYARA SHER HAI SAHAB..
man khush ho gaya.......
ReplyDeleteuski chahat bhi to zaroori hai,bas mere chahne se kya hoga...durudt farmate hain aaap arsh sahab!..daad qabool farmayen..:)
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया रचनाये है सभी खास कर भूंख से रात ........बहुत ही बढ़िया लेने है
ReplyDeletehttp://ekprayasbetiyanbachaneka.blogspot.com/
एक प्रयास " बेटियां बचाने का "
इस ब्लॉग पर लड़के लडकियों के अनुपात में आते अंतर को रेखांकित करती कहानिया ,लेख ,समाचार ,या सुझाव ,चित्र आदि आमंत्रित है ब्लॉग में सहयोगी की भूमिका में भी आपका स्वागत है जिसके लिए टिपण्णी में जाकर अपनी प्रतिक्रिया के साथ अपना इ मेल आई दी भी छोड़े इस यज्ञ में आपके सहयोग रूपी आहुतियां अति आवश्यक हैं मलकीत सिंह जीत
waah! bahut hi behtreen likha hai aap ne...bdhai sweekaren.....
ReplyDeleteआगामी शुक्रवार को चर्चा-मंच पर आपका स्वागत है
ReplyDeleteआपकी यह रचना charchamanch.blogspot.com पर देखी जा सकेगी ।।
स्वागत करते पञ्च जन, मंच परम उल्लास ।
नए समर्थक जुट रहे, अथक अकथ अभ्यास ।
अथक अकथ अभ्यास, प्रेम के लिंक सँजोए ।
विकसित पुष्प पलाश, फाग का रंग भिगोए ।
शास्त्रीय सानिध्य, पाइए नव अभ्यागत ।
नियमित चर्चा होय, आपका स्वागत-स्वागत ।।
आप बहुत अच्छा लिखते हो!
ReplyDeleteEK KHUBSURAT BANAGI AAPAKA AIHTARAM
ReplyDeleteसुंदर शब्दों का चयन ,सुन्दर भाव अभिवयक्ति है आपकी इस रचना में
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