होली की सभी को बहुत शुभकामनाएँ ! और इसी के साथ आईए सुनते हैं एक नई ग़ज़ल !
बडी हसरत से सोचे जा रहा हूँ
तुम्हारे वास्ते क्या क्या रहा हूँ
वो जितनी बार चाहा पास आया
मैं उसके वास्ते कोठा रहा हूँ
कबूतर देख कर सबने उछाला
भरी मुठ्ठी का मैं दाना रहा हूँ
मैं लम्हा हूँ कि अर्सा हूँ कि मुद्दत
न जाने क्या हूँ बीता जा रहा हूँ
मैं हूँ तहरीर बच्चों की तभी तो
दरो-दीवार से मिटता रहा हूँ
सभी रिश्ते महज़ क़िरदार से हैं
इन्ही सांचो मे ढलता जा रहा हूँ
जहां हर सिम्त रेगिस्तान है अब
वहां मैं कल तलक दरिया रहा हूँ
अर्श
बहुत बहुत खुबसूरत ग़ज़ल .... हर पंक्ति दिल को छूती है....
ReplyDeleteबहुत उम्दा ग़ज़ल है अर्श भाई
ReplyDeleteसभी रिश्ते महज़ क़िरदार से हैं
इन्ही सांचो मे ढलता जा रहा हूँ
जहां हर सिम्त रेगिस्तान है अब
वहां मैं कल तलक दरिया रहा हूँ
वाह वाह वाह
वाह ... प्रकाश जी लाजवाब ... मज़ा आ गया इतने दिनों के बाद पढ़ के आपको ... हमारे न सही चलो किसी के कहने का कुछ असर तो जरूर हुवा होगा ... और होना भी चाहिए ... हा हा ...
ReplyDeletear sheir lajawab!!ek mukammal gazal!!dili-daad Arsh sahab!!..:)
ReplyDeletewah....har pangti lazabab.
ReplyDeleteपिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...
ReplyDeleteइस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद कबूल करें.
नीरज
बहुत सुन्दर , सार्थक सृजन.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग meri kavitayen पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा .
बहुत खूबसूरत गज़ल...
ReplyDeleteदाद कबूल करें.
सादर.
प्रिय अर्श जी
ReplyDeleteक्या बढ़िया ग़ज़ल लिखी है..... सारे शेर नगीने हैं..... !
पर यह दो शेर लाजवाब और पुरनूर है_____
कबूतर देख कर सबने उछाला
भरी मुठ्ठी का मैं दाना रहा हूँ
मैं लम्हा हूँ कि अर्सा हूँ कि मुद्दत
न जाने क्या हूँ बीता जा रहा हूँ
क्या सच्चा शेर कहे हैं ..... वाह वाह !!!!
सुंदर शायरी ...
ReplyDeleteशुभकामनायें ...!!
बहुत सुन्दर, बधाई.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग "meri kavitayen"पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा.
beautiful...
ReplyDeletewelcome to माँ मुझे मत मार
शादी के बाद घूमने के लिए खोपोली से अगर कोई दूसरी बेहतर जगह बताये तो उसकी बात मत मानना...बस चले आना ...जुलाई अंत से सितम्बर के बीच कभी भी...
ReplyDeleteनीरज
bahut sundar gazal likhi hai aapne.. aanand aa gaya.
ReplyDeleteवाह प्रकाश जी
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर ,,,,, लाजवाब !
बधाई !
वाह प्रकाश जी
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर ,,,,, लाजवाब !
बधाई !
बढ़िया, एक खूब्सूरल गज़ल...
ReplyDeleteक्या कहूँ, उम्दा!
ReplyDelete---
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर , बधाई स्वीकारें.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारकर अपना स्नेह प्रदान करें, आभारी होऊंगा .
वाह बहुत सुन्दर भाव पूर्ण ..शुभ कामनाएं प्रकाश जी .....
ReplyDeleteI was very encouraged to find this site. I wanted to thank you for this special read. I definitely savored every little bit of it and I have bookmarked you to check out new stuff you post.
ReplyDeletebehtareen,
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वो जितनी बार चाहा पास आया
ReplyDeleteमैं उसके वास्ते कोठा रहा हूँ
कबूतर देख कर सबने उछाला
भरी मुठ्ठी का मैं दाना रहा हूँ
बहुत ही उम्दा गज़ल,हर शेर लाजवाब हैं ।
bahut sunder ghazal.
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