८ मई को जब सीमा जी के विरह के रंग कव्य संग्रह का विमोचन सीहोर में डा. बशीर बद्र , बेकल उत्साही ,राहत इन्दौरी , और नुसरत मेहंदी साहिबा के हाथों हुआ तो इस ऐतिहासिक और स्वर्णिम पल का गवाह मैं खुद हूँ, किस तरह से इस विरह के रंग की सराहना की गयी थी ! ऐसा लगता है के ये कल ही तो बात है जब सीमा जी ने ब्लॉग पर अपनी कविताओं से लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया था ... और ये एक आज का दिन जब उनकी पहली पुस्तक "विरह के रंग "काब्य संग्रह के रूप में हमारे सामने है !
सच में, मैं खासकर सीमा जी की छंद मुक्त कविताओं का हमेशा ही से प्रशंसक रहा हूँ , जिस भाव और तेज से ये विरह की बात करती हैं , जहन यह सोचने पर मजबूर हो जाता है के आखिर इस मुश्किल बिधा को कैसे ये आसानी से कह लेती हैं... जो वाकई बेहद मुश्किल काम है, विरह के बारे में लिखना बेहद कठिन काम है साहित्य की बिधा में ...
सच कहूँ तो कोई इस तरफ ध्यान भी नहीं देता, इस खालिस पाक लेखन की तरफ ! वरना हमारे साहित्य में वैदेही की तड़प , उर्मिला की पीर , और मांडवी की छटपटाहट को लोग पढ़ते और उनकी इस पीड़ा को भी समझते ! मगर कहीं भी इनके बारे में कोई उल्लेख सात्विक तौर पर नहीं मिलता ... तभी मैं कहता हूँ के विरह को साहित्य में जो स्थान और मुकाम हासिल होनी चाहिए थी वो नहीं हुई और वो हमेशा ही अपनी इस सौतेले ब्यवहार आंसुओं पर बहाई है !
सीमा जी की कविताओं के बारे में वरिष्ठ गीतकार और लेखक श्री हठीला जी खुद कहते हैं के विरह की जिस रूप को सीमा जी ने अपनी कविताओं में रखा है, वहाँ हार वाली बात है ही नहीं , वहां एक संघर्ष है जो जीवन को कहीं से भी विचलित नहीं होने देती ! एक तप है ,एक साधना है ,एक पूर्ण जीवन है, इस विरह की कविताओं में जो हर संवेदनशील मन को अपने से प्रतीत होते हैं ! ये कहना सही भी है !
इसका उदाहर इस छोटी से बात से देखें की ....
मुझसे मुह मोड़ कर तुमको जाते हुए मूक दर्शक बनी देखती रह गई .
क्या मिला था तुम्हे मेरा दिल तोड़कर ज़िंदगी भर यही सोचती रह गई
क्या मिला था तुम्हे मेरा दिल तोड़कर ज़िंदगी भर यही सोचती रह गई
इन चंद लइनों में एक विरहिन के जो दर्द को इन्होने उकेरा है वो अपने आप में ज़मानत है इस विरह के रंग के लिए , जो सिर्फ सीमा जी के बूते की ही बात है !
हिंदी की शब्दों का समिश्रण जिस तरह से इन्होने किया है साथ ही कुछ ऐसे शब्द जो मूलतः विरह के लिए ही बने हों जैसे - 'बिलबिलाना " ऐसे शब्द बहुत ही कम पढने को मिलते है...
हिंदी की शब्दों का समिश्रण जिस तरह से इन्होने किया है साथ ही कुछ ऐसे शब्द जो मूलतः विरह के लिए ही बने हों जैसे - 'बिलबिलाना " ऐसे शब्द बहुत ही कम पढने को मिलते है...
बिलबिला के इस दर्द से
किस पनाह में निजात पाऊं...
तूने वसीयत में जो दिए,
कुछ रुसवा लम्हे ,
सुलगती तन्हाई,
जख्मों के कुछ नगीने ...
किस पनाह में निजात पाऊं...
तूने वसीयत में जो दिए,
कुछ रुसवा लम्हे ,
सुलगती तन्हाई,
जख्मों के कुछ नगीने ...
क्या खूबसूरती से इन्होने अपनी शिकायत की है , लेखनी में यही तो धार है तो मानस को झकझोर के रख देती है ...
विरह में शिकायत तो होती है मगर उसका तरिका अलग हो तो और भी खुबसूरत हो जाए ... मुझे जहाँ तक लगता है के शिकायत, और नहीं हार, के बीच में इन की कवितायेँ हैं जिसके लिए बरबस ही मुखमंडल से वाह की ध्वनि फूटती है ...
सबसे पहली कविता....
विरह में शिकायत तो होती है मगर उसका तरिका अलग हो तो और भी खुबसूरत हो जाए ... मुझे जहाँ तक लगता है के शिकायत, और नहीं हार, के बीच में इन की कवितायेँ हैं जिसके लिए बरबस ही मुखमंडल से वाह की ध्वनि फूटती है ...
सबसे पहली कविता....
ह्रदय के जल थल पर अंकित
बस चित्र धूमिल कर जाओगे
याद तो फ़िर भी आओगे ...
बस चित्र धूमिल कर जाओगे
याद तो फ़िर भी आओगे ...
कमाल ही है ये सब....
एक छोटी सी कविता ने जिस तरह से मन मोह लिया आखिरी पन्ने पर जब इसे मैंने पढ़ा ...
लगभग ९० कवितायेँ और कुछ गज़लें भी हैं इस काव्य संग्रह में जो आपको विरह के सारे ही रंग से ओत प्रोत करेगा और बताएगा के विरह रंगहीन नहीं होता उसमे भी एक रंग है जिससे लोगों ने सौतेला ब्यवहार किया है ...
बस उनके इस शे'र से विदा लेता हूँ के ...
एक छोटी सी कविता ने जिस तरह से मन मोह लिया आखिरी पन्ने पर जब इसे मैंने पढ़ा ...
बिना झपकाए मैं
अपलक देखूं
तुम को देखने की
अपनी ललक देखूँ !
इस भाव सौंदर्या के लिए सीमा जी को दिल से करोडो बधाई ...अपलक देखूं
तुम को देखने की
अपनी ललक देखूँ !
लगभग ९० कवितायेँ और कुछ गज़लें भी हैं इस काव्य संग्रह में जो आपको विरह के सारे ही रंग से ओत प्रोत करेगा और बताएगा के विरह रंगहीन नहीं होता उसमे भी एक रंग है जिससे लोगों ने सौतेला ब्यवहार किया है ...
बस उनके इस शे'र से विदा लेता हूँ के ...
ज़िंदगी का ना जाने मुझसे और तकाज़ा क्या है।
इसके दामन से मेरे दर्द का और वादा क्या है ॥
क्या खूब शे'र कहा है इन्होने ....इसके दामन से मेरे दर्द का और वादा क्या है ॥
विरह के रंग में कुछ ऐसी कवितायेँ हैं जो चाहती हैं के उन्हें और विस्तार दी जाए ताकि वो मुकम्मिल तरीके से अपनी शिकायत को सौंदर्य बोध से लोगों के और करीब पहुँच सके !
सीमा जी ब्लॉग जगत में किसी भी परिचय की मोहताज़ नहीं हैं जिस खूबसूरती से ये विरह के रंग का सौन्दर्यीकरण करती हैं उस बात को कहने के लिए जो दिली ताकत चाहिए वो मुमकिन है आज तक किसी ने नहीं दिखाई ....
अल्लाह मिक्यान इन्हें खूब बरकत दे और इनकी लेखनी की धार और तेज़ करे जिससे यह विधा और आफताब हो ...
शिवना प्रकाशन को भी इस काव्य संग्रह के लिए ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं ...
शिवना प्रकाशन से प्रकाशित यह काव्य संग्रह हालिया ही है,जो पठनीय और संग्रहनीय है , जिसका मूल्य मात्र २५० /- रुपये हैं!
प्रकाशक का पता ----शिवना प्रकाशन को भी इस काव्य संग्रह के लिए ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं ...
शिवना प्रकाशन से प्रकाशित यह काव्य संग्रह हालिया ही है,जो पठनीय और संग्रहनीय है , जिसका मूल्य मात्र २५० /- रुपये हैं!
शिवना प्रकाशन पी.सी. लैब ,
सम्राट कॉमप्लेक्स बेसमेंट सब स्टैंड ,
सीहोर - ४६६००१
फोन न ... ०९९७७५५३९९
अर्श
is kitaab se humein rubaroo karane ke liye dhanyawaad...
ReplyDeletemeri nayi kavita ke liye jaroor ayein...
ReplyDeletehttp://www.i555.blogspot.com/
सीमा जी की कविताओं का शुरु से ही प्रशंसक रहा हूँ. आपने बखूबी विस्तार से परिचय दिया उनकी प्रतिभा का. बहुत अच्छा लगा जानकर. किताब मेरे पास आ चुकी है. पढ़कर सुखद अनुभूति होती है लेखन की ऊँचाईयाँ देख.
ReplyDeleteबहुत अच्छी खबर, धन्यवाद
ReplyDelete"अर्श" क्या कहूँ कुछ समझ नहीं आ रहा. सच कहा ये कल की ही तो बात थी जब हम सब इस एतिहासिक पल के गवाह बने थे , हाँ एतिहासिक ही कहूंगी , जहां इतने महान हस्तियों के बीच इतने बड़े मंच पर आप सभी के साथ कुछ पल बिताने का मौका मिला था, और मेरे प्रथम काव्य संग्रह "विरह के रंग" का विमोचन हुआ था.
ReplyDeleteजिस तरह तुमने फिर उन पलो की स्वर्णिम छटा को यहाँ बिखेरा है, बस अभिभूत हूँ. तुम्हारी लेखनी ने फिर विरह के रंग को एक नया विस्तार दिया है. तुमने वहां भी हौंसला बडाया था और यहाँ भी अपने शब्दों का जादू बिखेरते हुए "विरह के रंग " में एक सुनहरा पन्ना और जोड़ दिया.
अंत में शिवना प्रकाशन और आदरणीय पंकज जी का आभार प्रकट करना केसे भूल सकती हूँ, शिवना प्रकाशन को ढेरो शुभकामनाये.
regards
Bahut khoobsoortee se aapne yah parichay karva diya..Kitab zaroor mangwa loongi..
ReplyDeleteSach,unki rachnayen gazab kee hain..
hmm..
ReplyDeleteSakha Seema ji ke shabdon ki gahraayi se koun nahi waqif ... aapki kalam se unki kitaab ke bare mein padhna bhi achcha laga....
ReplyDeletebharat aane par kitaab bhi lekar padhungi
सीमा जी की विरह की रचनाएर्न अपने आप में अनूठा रंग लिए होती हैं ... इस पुस्तक का आनंद गुरुदेव की कृपा से ले रहा हूँ .. आपका आभार इस समीक्षा के लिए ...
ReplyDeleteसीमा गुप्ता जी कि किताब "विरह के रंग" ने भावों को बहुत अच्छे से पिरोया है, और अर्श आपकी समीक्षा ने मेरी इस बात को पुख्ता कर दिया है.
ReplyDeleteसीमा जी को बहुत बहुत बधाई
सीमा जी को बधाई ।
ReplyDeletewah.
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