Sunday, July 13, 2008

वो गिरफ्ते-ग़म की ....

वो गिरफ्ते - ग़म की नुमाइश हो जाए ,
ऐ जिंदगी फ़िर तेरी आज़माइश हो जाए॥

वो मुज्जसम सी बेखुदी की कसम ,
उम्र बाकि है अभी कोई ख्वाइश हो जाए ॥

गर्मी-ऐ-हसरते -नाकाम में जल गए होते ,
खुदानुमाई की नुमाइश हो जाए ॥

वो जो बे-नज़र,बे - जुबान खड़ा है "अर्श"
कुछ करो की उनकी सिफारिश हो जाए ॥

प्रकाश "अर्श "
१३/०७/ 2008

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