सितम्बर का महिना उफ्फ्फ भयावह ... काफी दिनों से गूरू जी के आने का इंतज़ार कर रहा था बेशब्री से मगर ऊपर वाले ने मिलना नही लिख रखा था , अजीबो गरीब हादसे एक पे एक मन को झकझोर के रख दिया था ... खैर ज़िंदगी है और ये सब तो वाजिब ही है ...उधर गूरू भाई गौतम की ख़बर मिली , अल्लाह मियाँ मेरे भईयों को जल्दी दुरुस्तगी बख्शे , अरसे बाद एक ग़ज़ल कहने की कोशिश की है , गूरू का आर्शीवाद मिला है और एक हलकी फुलकी ग़ज़ल आप सभी के सामने लेकर हाज़िर हूँ ताकि लिखने का क्रम ना टूटे... आप सभी के प्यार और आर्शीवाद के लिए ...
दर्द मेरा बढ़ जाता है पुरवाई में ।
उम्र कटी है जख्मों की भरपाई में ॥
उम्र कटी है जख्मों की भरपाई में ॥
बरखा के बादल को देखा जब घिरते
कोयल कूकि कुहुक कुहुक अमराई में ॥
डूब के अब तक मैं भी पार उतर जाता
ग़ालिब कहते डूब न इस गहराई में ॥
तेवर गुस्सा रहमत लज्जा साजन का
क्या क्या है और क्या बोलूं हरजाई में ॥
मैं तन्हा कब होता हूँ किसने बोला
तन्हाई तो होती है तन्हाई में ॥
मेरी अर्थी उसकी डोली संग उठी
तब तो दर्द भरा है यूँ शहनाई में ॥
कोयल कूकि कुहुक कुहुक अमराई में ॥
डूब के अब तक मैं भी पार उतर जाता
ग़ालिब कहते डूब न इस गहराई में ॥
तेवर गुस्सा रहमत लज्जा साजन का
क्या क्या है और क्या बोलूं हरजाई में ॥
मैं तन्हा कब होता हूँ किसने बोला
तन्हाई तो होती है तन्हाई में ॥
मेरी अर्थी उसकी डोली संग उठी
तब तो दर्द भरा है यूँ शहनाई में ॥
अर्श को देखो नाम कमा के बैठा है
नाम बहुत होता है क्या रुसवाई में ?
नाम बहुत होता है क्या रुसवाई में ?
प्रकाश'अर्श'
०१/१०/२००९
तन्हाई तो होती है तन्हाई में......बहुत दिनों के बाद आपको पढ पाया, मजा आ गया।
ReplyDeleteअहा! आनंद आ गया अर्श मियां। मतले ने ही जान निकाल दी, आगे मत पूछो...तालियां, तालियां...
ReplyDeleteबरखा के बादल को देखा जब घिरते
ReplyDeleteकोयल कूकी कुहुक-कुहुक अमराई में
हुज़ूर !!
मालूम भी है आपको ...
किस कदर हसीं शेर
कह डाला है आपने !?!
एक पुर-कशिश माहौल का खाका खींच दिया है
और मियाँ गालिब से शिकायत भी वाजिब है आपकी ......
और ....
"मेरी अर्थी ...." वाला शेर
वली दक्कनी और अदम का एहद याद आ गया
और एक मिसरा जो मतले में इस्तेमाल किया है ..
"उम्र कटी है ज़ख्मों की भरपाई में ..."
ला-जवाब ......
आपके उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ जैसा
मुबारकबाद
---मुफलिस---
बहुत खुब भाई जी। बात एक दम सही है नाम ज्यादा होती है तन्हाई में। सुन्दर रचना
ReplyDeleteअर्श जी,
ReplyDeleteकितने मौसम उतर आये हैं शब्दों में, क्या खूब शेर कहे हैं कि बस पढ़ता हूँ बार बार
बरखा के बादल को देखा जब घिरते
कोयल कूकी कुहुक-कुहुक अमराई में
वाह वाह वाह...
बहुत सुंदर अर्श भाई , दिल मोह लिया.
ReplyDeleteधन्यवाद
वाह वाह!! रुक के दिखे पर खूब दिखे वाकई:
ReplyDeleteबरखा के बादल को देखा जब घिरते
कोयल कूकी कुहुक-कुहुक अमराई में
क्या बात है!!
गौतम का स्वास्थय सुधार पर है, जानकर राहत हुई.
Kayal hun aapkee rachnaon kee.."kambakht ye dil abhitak apne paas hai?" kya kahne..!
ReplyDeleteभई ख़ूब बिलेलान होकर ही दाद देता हूं इस ग़ज़ल के लिये जो अपने में ग़ज़ल की सारी कोमलता समेटे हुए है. चेहरे से रेशम के दुपट्टे को गुज़ारने जैसा अहसास. वाह!
ReplyDeletebahut umda , bahut khoob, sabhi sher lajawaab. badhaai.
ReplyDeletearsh tum the kahan bhai, phone vagairah bhi nahin uthaya.
Main tanha kab hota hoon kisne bola ....
ReplyDeleteaur
arsh ko dhekho naam kama ke baithe hain....
alatareen sher the bahi,
aur ye koyal wala lagta hai gaon gaye main upja she'r hai !!
ati utkrisht rachna (as always) ke liye badhai...
aur phir se....
...wo do she'r jaan le gaye !!
बहुत सुंदर , हर शेर काबिल और लाजबाब
ReplyDeleteMain tanha kab hota hoon kisne bola ..padh ke yaad aayaa..main kab tanha hua tha yaad hoga..tumhara fainsla tha yaad hoga....dard mera badh jata hai purvayee me....dard ki ab had nahi...lajwaab rachna...
ReplyDeletebehtareen
ReplyDeleteगालिब कहते है डूब न इस गहराई में ......क्या बात कही है ....लेकिन जो सबसे खास शेर है वो..कातिलाना है ओर पूरी गजल पे भारी है .....
ReplyDelete"मै तन्हा कब हाँ होता हूँ किसने बोला
तन्हाई तो होती है तन्हाई में "
Re: " Arsh "
ReplyDeleteInbox X
Reply
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aadil rasheed
to me
show details 11:54 AM (32 minutes ago)
masha allah aapki ghazal bahut hi achchi hai sahlemumtana
poori gaon ki mithas liye hue aap hindi men kaise type karte hain ye muamma hai
ek sher
meri arthi uski doli..........
mubarakbad
aadil rasheed
बहुत अच्छी ग़ज़ल है । इसको कहा जा सकता है राइट कम बैक । मगर ऊपर वाला शेर मखमल में टाट के पैबंद सा लग रहा है । बहुत अच्छी गज़ल के साथ न लगाऐं । सारे शेर बोलते हुए हैं । बधाइ
ReplyDeleteगुरु देव का आर्शीवाद मिला मेरे लिए इन त्योहारों के मौसम में किसी उपहार से कम नहीं है ... गुरु देव के आज्ञा के बाद ऊपर का शे'र हटा दिया गया है ... प्रभु का आदेश सरमाथे पर .... सादर चरणस्पर्श
ReplyDeleteअर्श
बेहतरीन गज़ल. देर से पढ पाया.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
मैं तनहा होता हूँ किसने कब बोला...
ReplyDeleteतन्हाई तो होती है तन्हाई में!
क्या बात है!
बहुत खूब!
और आखिरी शेर भी पसंद आया .
उम्दा ग़ज़ल!
गौतम भाई के स्वास्थ्य की चिंता बरकरार है लेकिन इधर-उधर से उनके स्वास्थ्य लाभ की खबरों से राहत मिल रही है।
ReplyDeleteअब ये तो हो नहीं न सकता है अर्श, के आप पुरवाई में लिखें और हम हाज़िर न हों जश्ने-दाद में। क्या ही ख़ूब लिखा है भाई। जी ख़ुश कर दिया। हमें एक ग़ज़ल याद आ गई किसी ज़माने में लिखी हुई। शायद उसका एक शेर दर्ज भी है किसी एक पोस्ट पर। चलिए आगे देखते हैं कभी। आपके गुरूजी को बहुत बहुत प्रणाम कहिएगा हमारा।
ReplyDeleteआपकी तारीफ़ तो ब्लॉग पर गजल जगत का बच्चा-बच्चा करता है, मैं ही न जाने क्यों हमेशा मन बनाता हूँ आप तक पहुँचने का और अक्सर यह सोचकर कि वहां से लौट चुका हूँ, निश्चिंत हो जाता था. इस बार दृढ निश्चय था, लिहाज़ा आ ही गया. गजल बहुत अच्छी है, कंटेंट्स भी ताजे हैं, गुरु का आशीर्वाद भी है लेकिन आप थोड़ी मेहनत और कर सकते हैं. यह गजल और भी अच्छी हो सकती है. आप युवा हैं और मेहनत आप नहीं करेंगे तो क्या मैं करूंगा? तेवर को धार दें भाई, शुभकामना.
ReplyDeleteab एक शेर हटाने के लिये मैं भी कहूँगी तुम्हारे मुँह से मुझे ऐसे शेर अच्छी नहीं लगते
ReplyDeleteमेरी अर्थी उसकी डोलीसंग उठी----- माँ कैसे सुन सकती है ये बात?
इसकी की जगह मुझे ये चाहिये
मै दिल के हाथों हारा माँ
अब बात करो शहनाई की
खैर ये तो हो गयी मेरी बात अब गज़ल की बात करोूँ तो हर एक शेर लाजवाब है ।
मैं तनहा होता हूँ किसने कब बोला...
तन्हाई तो होती है तन्हाई में!
तभी तो इतने गँभीर रहते हो।
दर्द मेरा बढ जाता है पुरवाई मे
उम्र कटी जख्मों की भरपाई में
बहुत सुन्दर गज़ल है बस एक शिकायत और है कि जल्दी पोस्ट लिखा करो बहुत बहुत आशीर्वाद
तन्हाई टी होती है तन्हाई में.....वाह !
ReplyDeleteसोचा किसी एक या दो शेर को सबसे सुन्दर मान चुनु.....लेकिन आपने तो इसकी कोई गुंजाइश ही नहीं छोडी...
ReplyDeleteबस हर शेर के के बाद वाह वाह की झडी लग गयी....
लाजवाब लिखा है आपने...लाजवाब....
भाई प्रकाश जी
ReplyDeleteबहुत उम्दा ग़ज़ल कही है, आने वाले वक़्तों में आपकी तरफ़ से और भी
ख़ूबसूरत ग़ज़लों की उम्मीदें जगाती हुई.
मैं कम आ पा रहा हूँ आजकल, लेकिन यक़ीन रखिये आपको याद ज़रूर करता हूँ
You back in your form
ReplyDeletecongrates!
ARSH JEE ,
ReplyDeleteAAPKEE GAZAL ACHCHHEE HAI LEKIN KUCHH
SHERON MEIN AUR NIKHAAR AA SAKTAA THA.MASLAN
" BARKHA KAA BAADAL " KE STHAAN PAR " SAAWAN KAA
BAADAL " PRAYUKT HOTA TO BAAT BANTEE." YAHAN
" BARKHA " FAALTOO BAN KAR AAYAA HAI.
" MAIN TANHA KAB HOTA HOON KISNE BOLA"
MISRA AGAR YUN HOTA TO USMEIN NIKHAR AATAA AUR
DOOSRE MISRE KO BHEE UTHAATA--
MAIN TANHAAEE MEIN RAHTA HOON,KISNE KAHAA
TANHAAEE TO RAHTEE HAI TANHAHAAEE MEIN
" TAB TO DARD BHARAA HAI YUN SHAHNAAEE MEIN" MEIN BHEE " YUN" FAALTOO HAI.
SHER YUN CHAAHIYE--
MEREE ARTHEE USKEE DOLEE SANG UTHEE
DARD TABHEE TO "ARSH"BHARAA TANHAEE MEIN
THODA VYAKARAN PAR BHEE DHYAAN DIJIYE.PAHLEE PANKTI MEIN " THAA" AUR DOOSREE
PANKTI MEIN " HAI" KAA PRAYOG SAHEE NAHIN.
AAPKAA BHAVISHYA UJJWAL HAI.BAHUT KUCHH SEEKHA HAI AUR SEEKH RAHE HAIN AAP.
SHUBH KAAMNAYEN.
अर्श जी !
ReplyDelete' उत्तर ' वाला मतला और' प्रश्न ' वाला मकता दौनों ही बेहद खूबसूरत बन पड़े हैं और उस पर ये शे'र " मैं तनहा कब ........"
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है ! आपकी लेखनी यूँ ही चलती रहे !
बहुत खूब जनाब ...
ReplyDeletewo tanhai wala sher phir se phadne aaiya tha...
ReplyDelete..chuhe ki tarah !!
chupke se.
:)
tom ye she'r mujhe de do (tuhare sir pe pistol rakh ke keh raha hoon)(give or die !!)...
nahi to?
nahi to kya....
apna hi 2nd last she'r padh lo.
hahaha
:)
aur online nahi aate aajkal...
...ya chupe rehte ho bil main, meri tarah ?
नमस्कार अर्श जी,
ReplyDeleteअच्छी ग़ज़ल है, "तन्हाई तो ..." इसके तो क्या कहने...........
डूब के अब तक मैं भी पार उतर जाता
ReplyDeleteग़ालिब कहते डूब न इस गहराई में ॥
बहुत बढ़िया भाव अर्श जी बधाई
Har ek baat jo aapne kahni chahi apni gazal se wo dil tak pahuchane wali thi.......Aap sirf likhte hi nahi acha he balki aapki soch bhi bahut alag he .sukriya itni achi gazal likhne ke liye.Waqui bahut khubsurat hain sare sh'r
ReplyDeleteमैं तन्हा कब होता हूँ किसने बोला
ReplyDeleteतन्हाई तो होती हैं तन्हाई में ..
बहुत खूब ..........
मैं तन्हा कब होता हूँ किसने बोला
ReplyDeleteतन्हाई तो होती हैं तन्हाई में ..
बहुत खूब ..........
पढ़ तो पहले ही गया था तुम्हारी इस बेमिसाल ग़ज़ल को, कुछ कहने अब आया हूं कि धीरे-धीरे टाइप कर सकता हूं...
ReplyDeleteतमाम तारिफ़ों से परे...
मतले से लेकर हर एक शेर। सारे काफ़ियों को इतने नये अंदाज़ में निभाया है तुमने कि क्या कहूं! जलन की बू आ रही हो मेरी टिप्पणी से तो बुरा मत मानना...
@मुफ़लिस जी,
इस "उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़" पे मेरा कापी-राइट है...
...तो अर्श की इस नायाब ग़ज़ल के लिये एक लंबा सा उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़...
उम्दा शेरों से सुसज्जित सुन्दर गज़ल...बहुत बढिया
ReplyDeleteगज़ल पूरी की पूरी ही अच्छी बनी है अर्श..! मतला, गालिब वाला शेर, हरजाई साजन के नखरे और आखिर में तुम्हारी रुसवाई सभी बहुत अच्छे...!
ReplyDeleteअच्छी प्रगति ले रहे हो तुम..बल्कि बहुत आगे बढ़ गये हो.. बधाई..!
sabhi lines khoob kahi hain!
ReplyDeleteमैं तनहा होता हूँ किसने कब बोला...
ReplyDeleteतन्हाई तो होती है तन्हाई में!
bahut khoob!
badhai ho aaapko
arsh bhai
ReplyDeletegazal padhkar ek junun sa chaaya hua hai ..
har sher par waah hi waah hai ..
ek sher jo sabse jyada choo gaya , wo hai tanhai waala///// ek dum dil ke bheetar jakar goonja..
meri badhai sweekar kare .
regards,
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
क्या बात है!!
ReplyDeleteबहुत अच्छी ग़ज़ल कही है. प्राण शर्मा जी की बातों पर भी ध्यान देने से लाभ ही होगा.
'कोयल कूकी कुहुक कुहुक अमराई में' - यह मिस्रा बहुत सुन्दर लगा. इसमें 'कुहुक कुहुक' की बहुत खूबसूरत तक़रार है. 'ग़ालिब कहते डूब न इस गहराई में' - अर्श, इस गहराई में डूबना तो
पड़ेगा ही.
वैसे पूरी ग़ज़ल क़ाबिले तारीफ़ है. बधाई.
वाह अर्श जी ..... कमाल की ग़ज़ल बहुत ही समय बाद .......... आज ही वापस दुबई लौटा और आज ही आपकी खूबसूरत ग़ज़ल से सामना हो गया .... मेरा तो दिन बन गया भाई ........... कितने लाजवाब शेर कहें है ..... हर शेर पर दाद निकलती है दिल से ... सुभान अल्ला .......... गज़ब धाय है आज मुद्दतों बाद आपने ...........
ReplyDeletemanna padega...wah!
ReplyDeleteआपकी इस खूबसूरत गजल पर दिल से दाद देती हूं। भई वाह क्या बात कही है। दमदार शब्द संयोजन।
ReplyDeleteअर्श जी,
ReplyDeleteदर्द रचना पैदा करता है। और देखिये लोग दर्द पाना नहीं चाहते। खैर..गज़ल सचनुच बेहतरीन है। फिर उम्दा टिप्पणियां भी। मैं क्या कहूं। गौतमजी जांबाज हैं। ऐसे में उनकी टिप्पणी आपकी गज़ल के लिये सोने पे सुहागा है। वाह क्या इंसान हैं आप सब। इश्वर सबको आनन्द से रखे।
मैं तनहा कब होता हूँ किसने बोला
ReplyDeleteतन्हाई तो होती है तन्हाई में ||
bahut khoob arsh bhai...
Arsh bhai ,
ReplyDeletePata nahee kyun, aapki nayee Gazal padhne ke baad aur Geet sunker Comment nahee ker pa rahee hoon
Mera PC – aaj kal BAND pada hua hai
Ye Lap top se Mail bhej rahee hoon – Please aap khud comment box mei rakh dijiyega .
Aap ki awaz bahut sadhee hue hai - - Bahut achcha laga aapka Geet gane ka Prayas
Gate rahiye, likhte rahiye –
Shubh kaamnao sahit –
Lavanys
"मेरी अर्थी उसकी डोली संग उठी
ReplyDeleteतब तो दर्द भरा यूँ शहनाई में"
शेर का अंदाज़ कातिलाना है...बेहद खूबसूरत.
काफी दिन बाद आया...
ReplyDeleteदिवाली की मुबारक बाद देने आया था आज भी...
और एक मस्त गजल से रूबरू हो गया ..
दिवाली की सुबह खुशगवार हो गयी...मौसमों के हाल इस ढंग से पढ़कर...
अब उस हटाये गए शेर की सोच रहा हूँ...
भले ही आप उसे गजल में ना रखें...अपने गुरू जी की बात मानें....
लेकिन कम से कम हमें अलग से मेल जरूर कर दें....
आपको, आपके गुरूदेव को दिवाली और उनके जन्मदिन की बधाई....
WiSh U VeRY HaPpY DiPaWaLi.......
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