मुझे नहीं पता इस रचना ने कैसे जन्म लेली मेरे अंदर ,...और फ़िर मैंने इसे कागज पर उकेर दिया ,... आप सब के सामने हाजिर है दुआ करें और प्यार दें...
आपका 'अर्श'
सर्दी की रात
चाँदनी छत पर पसरी हुई
हम दोनों
बालकनी से उसे छूते हुए
शब्द शून्य थे
समय की संकीर्णता
हलकी सी सिहरन
मगर
अजब सा पशोपेश
मेरा पलटना
फ़िर
उनका कहना
ऐ जी !!!! सुनते हो
सच
रिश्ते का मजमून था ?
ये
चाँदनी छत पर पसरी हुई
हम दोनों
बालकनी से उसे छूते हुए
शब्द शून्य थे
समय की संकीर्णता
हलकी सी सिहरन
मगर
अजब सा पशोपेश
मेरा पलटना
फ़िर
उनका कहना
ऐ जी !!!! सुनते हो
सच
रिश्ते का मजमून था ?
ये
आपका 'अर्श'
Shubhaan Allah !!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर है "रिश्तो का मजमून" और फिर ये मजमून अनायास तो नहीं जन्म लेते
ReplyDeleteअर्श भाई
ReplyDeleteदिल को छूती बेहतरीन रचना ....
आह! अब क्या कहूं --------सिर्फ़ कुछ शब्द ही कभी कभी सब कह जाते हैं । थोडे मे ही बहुत कुछ कह दिया।
ReplyDeleteक्या खूब! सिहर गया मैं...।
ReplyDeleteकविता की सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि आपने इसी उम्र में इस एहसास को शब्द देने, कविता बनाने की सामर्थ्य पैदा कर ली. दूसरी खसूसियत, आपने खुद के भीतर स्त्री मन पैदा करके यह रचना गढ़ी. शब्दों, लहजे के एतबार से भले ही पुल्लिंग ध्वनित हो परन्तु पूरा मसला स्त्री मन वाला है. पुरुष को चांदनी, प्रकृति वगैरह कहाँ नजर आते हैं, वो तो सिर्फ अपना चाँद देखता है. मैं शायद इस कविता पर अपनी बात सही ढंग से कह नहीं पा रहा हूँ ... लिहाज़ा, बधाई के साथ विदा.
ReplyDeleteरिश्तों की मिठास है इसमें
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है बधाई।अर्श जी,कविता ऐसे ही जन्म लेती है....अचानक.....पता नही कहाँ से प्रकट हो जाती है....
ReplyDeleteअर्श जी .......... ये अनजाने ही नहीं ............ प्यार की शुरुआत है .......... जो अनजाने ही आपके मन में आयी है ..... धीरे धीरे अपना रूप भी ले लेगी ........... बहूत लाजवाब है ........
ReplyDeleteVandana ji ki post mein ek khat ka jikra hai ......aur aapki post mein wo rishta.....aapki poetry lekhan ke bare mein nahi jante they ham... achcha hai ye bhi
ReplyDeleteHEART TOUCHING POEM, ARSH!
ReplyDeleteकमाल का कलाम
ReplyDeleteए जी ....!!!!!
ReplyDeleteओये होए .....!!
सर्द चांदनी रात में छत पे ....ए जी के साथ .....?????
सुभानाल्लाह ......मुबारकां जी मुबारकां .....!!!
bahut khoob arsh, swapn deekhne lage hain , satya bhi hone wale hain lagta hai. behatareen abhivyakti.
ReplyDeleteवाह अर्श भाई क्या बात है, बहुत सुंदर.
ReplyDeleteधन्यवाद
:(
ReplyDeleteek line hai
ReplyDeleteisee mauke kee
toote chhappar tale chaandnee beente
sone se din bhee usne vitaaye bade
jab adhar maun ho nain bhaavo bhare
uske sunne vyathaa tum bhee rukte zaraa
( Ramesh Sharma )
to bhaiyaa
kah to diya azee sunte ho
ab tham lo aanchal
jamanaa jo kagegaa
( kah lene do )
sundar bhav
bebaak
badhaai
वाह-वा !!
ReplyDeleteअर्श भाई ,
इस एहसास की
मखमली आमद मुबारक हो....
रिश्ते का मज़मून तो कहीं
अन्दर ही होता है ...
चांदनी को छू लेने की
मधुर कोशिश में ही कहीं ....
मन के गहरे ,
कोमल , रेशमी एहसासात को
बहुत ही खूबसूरत अल्फाज़ दे कर
मुकम्मिल किया है आपने....
यही तो है कविता का जन्म ....
दिगंबर जी की राए से सहमत हूँ
आपसे मिलना पडेगा ...
waheeN 'C.P.' ke usee park meiN...!!
he he :) Good One aapki to baat ban gayee.. humne apne blog par apni hi baat bigaad rakhi hai :P
ReplyDeleteबहुत सुंदर एहसास ..
ReplyDeletevaah beta kyaa baat hai ye rishte kaa majaboon to bahut sundar hai aur ye kisee aane vaali khishee kee nishaani hai | bvahut sundar kavita hai bahut bahut badhai jaldi me comment de rahi hoon baad me is mazamoon ko fir se acchee tarah samajhoongee aur kaan pakad kar poochhoongi maa ko bataye bina mazjmoon bhi banane lage kyaa baat hao ? bahut bahut aasheervaad isi tarah khush raho | baaki kal fir ati hoon yaa shaam ko
ReplyDeleteprem bhare bhav...rishto ke sundar ahsaas....waah....badhai....
ReplyDeleteकुछ कहा कुछ सुना ...बिना कहे सब सुना , एक रिश्ते की पुलिया सी बनाते हुए ...
ReplyDeleteवाह अर्श भाई रिश्ते के मजमून का क्या एहसास है...
ReplyDeleteबहुत दिनों से ब्लॉग पर आ नहीं पाया था सो माफ करना। सुन्दर रचना...
arsh bhai,
ReplyDeleteye jo " E JEE" he na, bada dilchasp he/isame alag hi andaaz he, kasheesh he aour jab pahli baar kisike muh se suna jataa he to mashaaallah..bas aanand aa jaataa he mano sab kuchh mil gaya. rishte ke bandhan ke liye sabse badi gaanth yahi he/
bahut shaaleen rachna..
जो रचना इस प्रकार से जन्म लेती है, उसमें हृदय-पक्ष उभर कर आता है क्योंकि इसमें कृत्रिमता नहीं होती. इतना ही नहीं, पढ़ने वाले के हृदय के तारों को भी झंकारने में सक्षम होती है. सुन्दर रचना है.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteaadil rasheed
ReplyDeleteto me
show details 10:38 PM (7 minutes ago)
mashah allah
प्रकाश, ये नया अवतार तो खूब है!
ReplyDeleteकागज़ पर उकेरा भी क्या खूबसूरती से..
ReplyDeleteबहुत ही khubsurati से मन के komal ahsaason को kagaz पर ukera है..कुछ कहते ,कुछ chhupaate hue !
ReplyDeleteहम्म्म्म्म..... कुछ तो है इस अजी सुनते हो के पीछे...! कुछ अगढ़ मतले..कुछ बेबहर शेर और अब ये अकविता.....!!!!!!!!
ReplyDeleteऔर फिर कहते हो कि मैं आपसे कुछ नही छिपाता...!
any ways बिंदाऽऽऽऽऽस
अर्श भाई ..
ReplyDeleteएक तो ये बताएं...के ऊपर से १५ नंबर वाले अनाम जी का मुंह ऐसे क्यूँ लटका हुआ है....:(
और बालकनी की पढ़ते ही हमें सबसे पहले अपने jhon की याद आई...
फिर ऐ जी, सुनते हो पढा तो ....( वो परदे के पीछे बज-बज / आमंत्रित करते हैं कंगन )
फिर कहते हो कुछ नहीं है / कुछ भी नहीं है....
अब तो कह दो..
नायाब गज़ल
ReplyDeleteयह शेर तो याद हो गया-
तिनके तिनके से बनाया घोसला
टूटकर बिखरा तो फिर तिनका हुआ
कभी-कभी ये आँखें खुद ब खुद डबडबा जाती हैं.....क्या बात कही है....बहुत सुन्दर शायरी है
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