Saturday, June 28, 2008

जिंदा हूँ मगर इक कश -मकश.....

जिंदा हूँ मगर इक कशमकश मैं हूँ,
खान--दिल में था कभी अब कफस में हूँ॥

मैं तो मर मिटा था अहले-वफ़ा जानकर,
उसने जब कहा था मैं हम-नफस में हूँ॥

मैं शाखे-ज़र्द हो रहा वो बागबान फ़िर भी,
उनकी दिल्लगी है मैं आरामकास में हूँ॥

प्रकाश "अर्श"
२१/०२/2008

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