जिंदा हूँ मगर इक कशमकश मैं हूँ,
खान-ऐ-दिल में था कभी अब कफस में हूँ॥
मैं तो मर मिटा था अहले-वफ़ा जानकर,
उसने जब कहा था मैं हम-नफस में हूँ॥
मैं शाखे-ज़र्द हो रहा वो बागबान फ़िर भी,
उनकी दिल्लगी है मैं आरामकास में हूँ॥
प्रकाश "अर्श"
२१/०२/2008
खान-ऐ-दिल में था कभी अब कफस में हूँ॥
मैं तो मर मिटा था अहले-वफ़ा जानकर,
उसने जब कहा था मैं हम-नफस में हूँ॥
मैं शाखे-ज़र्द हो रहा वो बागबान फ़िर भी,
उनकी दिल्लगी है मैं आरामकास में हूँ॥
प्रकाश "अर्श"
२१/०२/2008
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आपका प्रोत्साहन प्रेरणास्त्रोत की तरह है,और ये रचना पसंद आई तो खूब बिलेलान होकर दाद दें...... धन्यवाद ...