मैं उदास रात की सदा सही,वो हसीं रात की महफ़िल है,
ये हकीकत और बयां ना हो ,मैं मुसाफिर हूँ वो मंजिल है॥
वो नज़र इस तरह मिला गया,मैं वहीँ का वहीँ ठहर गया,
ना ही चल सका ना तलब हुई,मैं डूबता रहा के वो साहिल है॥
मैं खाक हूँ जो बिखर गया, वो शबनम की तरह रोशन है,
मैं उसका मिजाज़ ना समझ सका,के मैं गैर हूँ वो गाफिल है॥
प्रकाश "अर्श"
१२/०४/२००८।
nice keep it up............
ReplyDeleteTum yuhi sabdo ka silsila rakhna....
ReplyDeleteHum apni mahak ka rakhenge.....
Tum Likhna fullo ko .......
Hum padhne ka karwa rakhenge