वेसे तो मैं मुसलसल ग़ज़ल ही लिखने की कोशिश करता हूँ ,मगर एक गैर मुसलसल ग़ज़ल आप सबों के सामने पेश कर रहा हूँ उम्मीद करता हूँ पसंद आए........
किस्मत में मेरे , चैन से जीना लिख दे ।
दोजख भी कुबूल हो,मक्का-मदीना लिख दे ॥
जहाँ दहशत जदा हैं लोग,चलने से गोलियां ।
हर गोलिओं के नाम , मेरा सीना लिख दे ॥
मेहनत किए बगैर ,बद अंजाम से डरता हूँ ।
कुछ काम कर सकूँ,वो खून-पसीना लिख दे ॥
वो शान है उनकी ताज पे,गोरों के महफ़िल में ।
कभी शर्म आ जाए ,तो वो नगीना लिख दे ॥
जितना वो पिसेगी ,चढेगा उतना उसका रंग ।
मोहब्बत का नाम ,कोई संगे - हिना लिख दे ॥
दिखे है तेरा अक्स ,हर टुकड़े में यहाँ "अर्श"
टुटा था ,वो दिल था ,तू आइना लिख दे ॥
प्रकाश "अर्श"
३०/११/२००८
चौथा शे'र भारत के कोहिनूर हीरे के बारे में कहा गया है जो इंग्लॅण्ड के महारानी के ताज पे सुशोभित है ॥