Sunday, November 23, 2008

इक हर्फ़ में हमने अपनी जिंदगानी लिख दी ...

इक हर्फ़ में हमने अपनी जिंदगानी लिख दी ।
हाय तौबा, हुआ फ़िर जो नादानी लिख दी ॥

वो समंदर है उसको इस बात का क्या ग़म ,
आंखों से जो बह निकले ,पानी- पानी लिख दी ॥

था कच्ची उमर का मगर था मजबूत इरादा ,
लहू के रंग से नाम उनकी आसमानी लिख दी ॥

नवाजा था उसने, के जाहिल हूँ ,मैं जालिम हूँ
मोहब्बत का करम था हमने मेहरबानी लिख दी ॥

हुई जो चर्चा अपनी मौत की ,जनाजे से दफ़न तक ,
किया था कत्ल ,मगर वक्त पे कुर्बानी लिख दी ॥

रहने दो, इत्मिनान से अब ऐ मेरे रकीबों ,
कुछ नही है मेरे पास,"अर्श"को जवानी लिख दी ॥

प्रकाश "अर्श"
२३/११/२००८

11 comments:

  1. हुई जो चर्चा अपनी मौत की......
    क्या बात कहे आज तो जान ही लेली......
    वक्त पर कुर्बानी लिख दी ......
    वाह ! ये पंक्तियाँ समां गई हैं मुझमें, दिल की गहराईयों में कहीं जाकर छुप गई मैं तलाशता हूं मिलती ही नहीं अब....
    ये रोग बहुत बुरा है जनाब...
    अब तो सच में रोगी हो गए...
    इn शब्दों के...........
    और kya karain इलाज़ भी ये ही हैं...........:)
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है आने के लिए
    आप
    ๑۩۞۩๑वन्दना
    शब्दों की๑۩۞۩๑
    इस पर क्लिक कीजिए
    आभार...अक्षय-मन

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  2. बहुत खूब ..कुछ शेर बहुत पसंद आए ..

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  3. Ek harf mein humne apni kahanee likh dee.....iska title hi mujhe behad pasand aaya....aur gajhal to usse bhi jyada achchi lagi....badhai svikariyega....

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  4. हुई जो चर्चा अपनी मौत की......
    क्या बात कहे आज तो जान ही लेली......
    वक्त पर कुर्बानी लिख दी ......
    " i too liked these words too much, heart of the poem"

    Regards

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  5. शायरी वाकई लाजवाब है...

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  6. भाई बहुत बढ़िया शेर. लिखते रहिये. उम्दा.

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  7. सलाम अर्श भाई,
    अच्छी ग़ज़ल है, विशेष रूप से मतला.
    एक गुजारिश है आपसे आप ब्लॉग का काला रंग हटा दे, आंखों पे बहुत ज़ोर पड़ रहा है.

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  8. तुम्हारे आखिरी शेर अक्सर ज्यादा पसंद आते है ....शायद कॉपी पेस्ट पर ताला लगा राखा है ....उससे पहला शेर भी खूब है...

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  9. हर हर्फ़ मे अर्श का हुनर देखते है .
    बेहतरीन नज्म की तलाश पूरी हुई देखते है

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