आती है उनकी याद अब भी कभी कभी ।
मिलता हूँ अपने आप से जब भी कभी कभी ॥
रहती थी ,परेशान वो, चेहरा छुपाने में
उतारता था जब नकाब सब भी कभी कभी ।
आई न, नींद उम्र भर इसी, इंतजार में
लगता है आ रही है वो अब भी कभी कभी ॥
लिखता था ख़ुद जवाब, मैं अपने सवाल का
देती न थी, जवाब वो तब भी कभी कभी ॥
हमने क्या बिगाडा "अर्श" के हम बिछड़ गए
करता है फ़िर गुनाह क्यूँ रब भी कभी कभी ॥
प्रकाश "अर्श"
१३/११/२००८
बहुत बढ़िया, कभी कभी नहीं हमेशा की तरह!
ReplyDeletebahut sundar likha hai --
ReplyDeleteआई न, नींद उम्र भर इसी, इंतजार में
ReplyDeleteलगता है आ रही है वो अब भी कभी कभी ॥
" very loving words and thoughts.."
bhatkty rhe tanha anjane raston pe hum, mudne lge hai ab rah unkee galii kabhee kabhee.."
Regards
आई न, नींद उम्र भर इसी, इंतजार में
ReplyDeleteलगता है आ रही है वो अब भी कभी कभी ॥
बहुत बढ़िया
arsh..bahut bahut shukriya aap ne geet pasand kiya--main ne isey mahaz 30 min mein prepare kiya tha -is liye khamiyan hain--lekin jaisa us din record ho gaya [by chance] waisa dobara with same 'feel nahin ho paya--is liye khaamiyon ke bawjood aisa ho rakha hai--agar aap chahen to main aap ko email kar dungi--achcha lagata hai agar kisi ko aap ki koi rachna-geet pasand aaye--abhaar sahit-alpana
ReplyDeletebohot accha likha hai.
ReplyDeleteसुंदर रचना है भाई... बधाई स्वीकारें....
ReplyDeleteवाह ! क्या बात कही है.......बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.खूबसूरत ग़ज़ल है...ऐसे ही लिखते रहें.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया...
ReplyDeleteआप सभी पाठकों का मैं दिल से रिणी हूँ ,आप सबों को दिल से आभार प्रकट करता हूँ ,और उम्मीद करता हूँ के इसे ही स्नेह और आशीर्वाद बनायें रखेंगे...
ReplyDeleteअर्श
very good...
ReplyDeleteप्यारे अर्श भाई, ग़ज़लों में आपकी भावाभिव्यक्ति बहुत सुंदर है. थोड़ा उर्दू ज़बान को सुधारने का प्रयास कीजियेगा. दिल्ली में तो अच्छी किताबें भी मिलेंगी आपको. या कोई आस-पास बतलाने वाला मिल जाए, है ना. तो उनसे इस्लाह भी ले सकते हैं.
ReplyDeleteआप और बेहतर हो जावें इसी कामना के साथ सदा आपका.
Behad nazuk ehsaas, ek kasakse bhara hua...is se aage kya kahun??
ReplyDeletePehlee baar aayee hun aapke blogpe, aage aur padhna chahtee hun !