अपने ही घर में आए हैं हम मेहमान की तरह ।
हमसे भी पूछा हाल-ऐ-दिल अंजान की तरह ॥
सबको लगाया उसने गले जी बड़े तपाक से ,
हमसे मिलाया हाथ भी तो मेहरबान की तरह ॥
ऐसी बेकली तो कभी जिन्दां में भी ना हो ,
जिन्दां में हूँ जिन्दा तो बस अह्जान की तरह ॥
चिलमन के उस तरफ़ से जो देखा था एकबार ,
शायद दिखा रहे थे हम भी नादान की तरह ॥
हमको निकाल देते "अर्श" गर बे-तमीज थे ,
हमको बुलाया है तो मिलो इंसान की तरह॥
प्रकाश "अर्श'
२/११/२००८
जिन्दां= कारागार ,बंदीगृह ॥ अह्जान = दुःख से ॥
very good,
ReplyDelete"bulaya hai to milo insaan ki tarah....."
atyan sundar. urdu par kafi achchi pakad hai aapki.
isi prakar roz kam se kam ek ghazal post karen.
shubh kamnaaen.
sanjeev mishra
www.trashna.blogspot.com
बहुत उम्दा.
ReplyDeleteतरहा=तरह...ऐसा कर लें. तरहा कोई शब्द नहीं.
बधाई और शुभकामनाऐं.
सबको लगाया उसने गले जी बड़े तपाक से ,
ReplyDeleteहमसे मिलाया हाथ भी तो मेहरबान की तरहा ॥
बहुत सुंदर, अर्श जी.
समीर जी मैंने तरह को तरहा इसलिए लिखा था ताकि लोग इसके रदीफ़ को उसी तरह जुबान पे ले..आपका मेरे ब्लॉग पे आना मेरे लिए सौभाग्य की बात है ..
ReplyDeleteसाथ में संजीव जी ,और अनुराग जी आपका भी स्वागत है मेरे ब्लॉग पे ..
बहोत बहोत आभार ..
अर्श
सबको लगाया उसने गले जी बड़े तपाक से ,
ReplyDeleteहमसे मिलाया हाथ भी तो मेहरबान की तरह ॥
"so wonderful expression, liked these lines too much particularly..good composition"
Regards
अरे मिया आपने तो हमें गले मिलाना, हाथ मिलाना तो दूर
ReplyDeleteफर्श पे ला पटका है....सलाम आपको ऐसे बहेतरीन रचना के लिए
बहुत अच्छे अर्श जी...लिखते रहें क्यूँ की जितना लिखेंगे उतना ही लेखन में सुधार आएगा...समीर जी बात सही थी
ReplyDeleteनीरज
बहुत अच्छा है .... बधाई !
ReplyDeleteलिल्लाह, बहुत ख़ूबसूरत अंदाज़, वाह, बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteआप सभी पाठकों का एक बारगी फ़िर से दिल से धन्यवाद करना चाहूँगा ...
ReplyDeleteआभार
अर्श
bahut khub
ReplyDeleteBahut achchi abhivyakti.
ReplyDeleteguptasandhya.blogspot.com
आपकी गज़ल भी किसी से कम तो नहीं।
ReplyDeleteबहुत भाई मेरे मन को